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IN वह मायाचार करने वाला साधु किल्विष देव के रूप में उत्पन्न होकर भी यह
नहीं जानता कि मैं किस दुष्कर्म के फल से इस नीच किल्विष देव जाति में उत्पन्न हुआ हूँ॥४९॥
49. Such deceitful shraman, when reborn as a Kilvish god, does not know that for what evil action he was punished by that rebirth as a Kilvish god. ५0 : तत्तोवि से चइत्ताणं लब्भइ एलमूअअं।
नरगं तिरिक्खजोणिं वा बोही जत्थ सुदुल्लहा॥ देवलोक से च्युत होकर (आयुष्यपूर्ण) वह मेमने के समान मूक भाषा बोलने वाला (गूंगा) मनुष्य होता है अथवा नरक या तिर्यंच योनि को प्राप्त करता है, जहाँ सम्यक् बोध की प्राप्ति होना अतीव दुर्लभ है॥५०॥
50. On completing his life span there, he descends and is born as a lamb-like mute human being or a hell being or an animal. It is almost impossible to get enlightenment as such beings.
५१ : एअं च दोसं दणं नायपुत्तेण भासियं।
अणमायं पि मेहावी मायामोसं विवज्जए॥ बुद्धिमान (मर्यादा का पालन करने वाला) साधु, ज्ञातपुत्र भगवान महावीर | द्वारा कहे इन दोषों को भलीभाँति पहचानकर अणुमात्र भी माया-मृषा (कपटपूर्वक kes असत्य) भाषण न करे॥५१॥
51. A disciplined shraman should properly understand these faults mentioned in the teachings of Jnataputra (Bhagavan Mahavir) and refrain from even the slightest of deception and duplicity. ___५२ : सिक्खिऊण भिक्खेसणसोहिं संजयाण बुद्धाण सगासे। तत्थ भिक्खू सुप्पणिहिइंदि तिव्वलज्ज गुणवं विहरिज्जासि॥
त्ति बेभि।
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श्री दशवैकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
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