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Sriniww FATHLIUILE WwUMAN
विशेषार्थ :
श्लोक ८७-९१. इन श्लोकों में भिक्षा लेकर अपने स्थान पर आने के बाद की विधि बताई गई है। ___ ओघनियुक्ति में इस विषय में विस्तार के साथ बताया है-उपाश्रय में प्रवेश करते समय पहले रजोहरण से पाद-प्रमार्जन करे, फिर 'निस्सही' दो बार बोले। इस शब्द का आशय है कि “हे भगवन् ! मैं जिस काम के लिए गया था उसे पूर्ण कर आ गया हूँ।'' इसके बाद मत्थएणं वंदामि नमो खमासमणाणं-मस्तक झुकाकर मैं अपने क्षमाश्रमण गुरुजन को वन्दना करता हूँ। ऐसा विनयपूर्वक उच्चारण करता हुआ गुरुओं के निकट आये। गुरु के समक्ष भिक्षा की झोली को रखकर स्थिर-चित्त से इच्छाकारेण तथा तस्सोत्तरी-करणेणं सूत्र को पढ़े फिर ‘लोगस्स उज्जोयगरे' का ध्यान करे। इसके साथ ही कायोत्सर्ग करे। कायोत्सर्ग में पहले गमनागमन की क्रिया में लगे अतिचारों का चिन्तन-स्मरण करे और फिर अनुक्रम से आहार-ग्रहण करने में लगे अतिचारों की विचारणा करे। आलोचना करने से भूलवश या अन्य कारण से लगे दोषों का निवेदन करने से हृदय में निष्कपटता आती है तथा दोषों की शुद्धि भी हो जाती है। (दशवै. आ. आत्मारामजी म., पृष्ठ २०५-२०९) ELABORATION: ___(87-91) In these verses in given the process of returning to the place of stay after alms-collection.
This process has been mentioned in greater detail in Ogh Niryukti-On return, while entering the upashraya, first of all he should clean his feet with his broom. He should utter 'nissahi' twice (the gist of words uttered is—“O Lord! I have returned after completing the work I went for."). Then, while approaching the guru, he should humbly utter the followingBowing my head I offer my salutations to my compassionate guru and elders. He should place the bag of alms before the guru, and, composing himself, recite the prescribed texts such as Icchakarena and Tassottari-karanena. After this he should start his meditation with Logassa Ujjoyagare (a panegyric) and proceed to review and atone as mentioned above. The importance of this process is that such a critical review, before the guru, of one's own faults during some action nurtures purity of heart besides the required
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__ श्री दशवकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
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