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Catuwal
आहार की आवश्यकता समझे तो (भिक्षाकाल आने पर) पहले बताई हुई विधि र अनुसार तथा आगे बताई गई विधि से दुबारा आहार-पानी की गवेषणा करे अर्थात् दुबारा गोचरी के लिये जावे॥२-३॥
2, 3. If an ascetic, who has brought the food and has eaten it while sitting in the upashraya or the place of study, is still hungry and requires more food, he may go again to seek alms at the proper time in the manner prescribed earlier. विशेषार्थ :
श्लोक २-३. सेज्जा-शय्या-सोने का स्थान या ठहरने का स्थान अर्थात् उपाश्रय, कोष्ठक या वसति।
निसीहियाए-नैषेधिक्यां-निषिद्ध स्थान अथवा वह एकान्त स्थान जहाँ जन सामान्य के आवागमन का निषेध हो और इस कारण स्वाध्याय के लिए उपयुक्त हो ऐसी स्वाध्यायभूमि। यह प्रायः उपाश्रय से भिन्न होती थी। दिगम्बरों में प्रचलित 'नसियां' इसी शब्द का अपभ्रंश है। ___ न संथरे-न संस्तरेत्-न रह सके तो। सामान्यतया साधु के लिए अल्प भोजन ही वांछित है किन्तु विशेष परिस्थिति में अपवादस्वरूप यह इंगित है कि अपर्याप्त भोजन से वह रह न सके तो पुनः गोचरी के लिए जावे। यह विशेष नियम टीकाकारों के मत में अस्वस्थ, तपस्वी, बाल आदि साधु के लिए ही बताया गया है।
ELABORATION:
(2, 3) Seija-place of sleeping; here it means place of stay like | upashraya.
Niseehiyaae--a prohibited place for common man but suitable for ascetics; a place where people are not allowed to come and as a result it becomes a place with sufficient solitude for self-study. This is generally different from the place of stay. The popular Digambar term for such places, nasiyan, is derived from this word,
Na samthare-cannot do without. Normally speaking an ascetic is supposed to eat only a little. But as an exception, he is allowed to go to seek alms if he cannot do without additional food under special circumstances. According to the commentators, this
पंचम अध्ययन : पिण्डैषणा (द्वितीय उद्देशक) Fifth Chapter : Pindaishana (2nd Section)
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