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सामाजिक हो, आर्थिक हो अथवा आहार की मनोज्ञता को लेकर हो। साधु की भिक्षा में बाधक नहीं बनना चाहिए। इससे स्वयं साधु की आहार के प्रति ललक प्रकट होती है तथा Me समाज में भेदभाव को प्रोत्साहन मिलता है। ELABORATION: ___ (27) Samuyanam-to collect pure alms from many places. To collect from a few and selected houses is against the ascetic code. If the taste and quality of the food become the yardstick of such discrimination, it reveals the craving for food in the mind of the ascetic. It also encourages such social discrimination. २८ : अदीणो वित्तिमेसिज्जा न विसीइज्ज पंडिए।
अमुच्छिओ भोयणम्मि मायने एसणा रए॥ वही साधु वास्तव में ज्ञानी है जो दीनता से रहित होकर, प्राण-निर्वाह के लिए आहार की गवेषणा करता है। जो आहार न मिलने पर कभी व्याकुल नहीं होता है और जो सरस भोजन मिल जाने पर उसमें मूछित नहीं होता है। वह आहार की मात्रा का उचित ज्ञान भी रखता है और उसी आहार का उपभोग करता है, जो आहार शास्त्रोक्त विधि से एषणीय सर्वथा शुद्ध अर्थात् निर्दोष होता है॥२८॥
28. An ascetic is truly wise if he seeks food with humility and only for his subsistence. He is never disturbed if he does not get alms and never attracted if he gets rich food. He is knowledgeable about the right quantity of the food, eats only what is acceptable according to the prescribed codes and is completely faultless and pure. २९ : बहुं परघरे अस्थि विविहं खाइमं साइमं।
न तत्थ पंडिओ कुप्पे इच्छा दिज्ज परो न वा॥ गृहस्थ के घर में विविध प्रकार के खाद्य तथा स्वाद्य पदार्थ विद्यमान रहते हैं। परन्तु यदि गृहस्थ, साधु को वे पदार्थ नहीं देना चाहे तो साधु उस गृहस्थ पर क्रोध नहीं करे, अपितु विचारना चाहिए कि यह गृहस्थ है। इसकी इच्छा है देवे या न देवे, मेरा इसमें क्या आग्रह है ?॥२९॥
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श्री दशवैकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
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