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वया
CILIEUTR
Amium
ELABORATION:
(38) Sasakkham-under the witness of the self; employing self control; as the name of the omniscient is invoked at the time of initiation, this word also means under the witness of the omniscient.
३९ : पियए एगओ तेणो न मे कोइ वियाणइ।
तस्स पस्सह दोसाइं नियडिं च सुणेह मे॥ ___ जो साधु अपने धर्म से विमुख होकर, एकान्त में छिपकर मद्यपान करता है
और समझता है कि मुझे यहाँ कौन देखता है, वह जिन आज्ञा की चोरी करता है। उस मायाचारी के प्रत्यक्ष दोषों को तुम स्वयं देखो और अदृष्ट मायारूप दोषों के को मुझसे सुनो॥३९॥
39. An ascetic who, going against his duty, consumes alcohol stealthily in solitude and thinks that no body is seeing him, is going against the order of the Jin. You should observe the apparent faults of such a deceitful person and hear from me about those that are not so apparent.
४० : वड्ढई सुंडिया तस्स मायामोसं च भिक्खुणो।
अयसो अ अनिव्वाणं सययं च असाहुआ॥ मद्यपान करने वाले साधु के मन में लोलुपता, छल, कपट, झूठ, अपयश और अतृप्ति आदि दोष बढ़ते जाते हैं। अर्थात् वह निरन्तर असाधुता की ओर बढ़ता रहता है॥४०॥
40. There is a continuous increase of vices like craving, deceit, duplicity, falsehood, ignominy and discontent. He falls unimpeded towards disgrace.
४१ : निच्चुव्विग्गो जहा तेणो अत्तकम्मेहिं दुम्मइ।
तारिसो मरणंते वि न आराहेइ संवरं॥ | पंचम अध्ययन : पिण्डैषणा (द्वितीय उद्देशक) Fifth Chapter : Pindaishana (2nd Section) १८५
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