________________
(Ayutuwww
MAINMDMIN
KENN
माया, निदान और मिथ्यादर्शन-ये तीनों सतत चुभने वाले पापकर्म हैं इसलिए इन्हें शल्य कहा है। पूजा व मान-सम्मान की इच्छा रखने वाला व्यक्ति सदा अपने दोषों को छिपाने का प्रयत्न करता रहता है यह माया-शल्य है।
ELABORATION: __ (36, 37) Mayasallam-the word shalya has numerous meanings such as weapon, tip of an arrow or a thorn. As a thorn or the tip of a weapon, sunk in the flesh, causes incessant pain, sinful karmas also cause incessant pain in the mind. That is why they are called shalya. Deceit, desire and falsehood are the sinful activities that cause continued pain and so they are known as shalya. A man desirous of respect and devotion always tries to hide his shortcomings, which is a deceitful activity. मद्यपान का निषेध ३८ : सुरं वा मेरगं वावि अन्नं वा मज्जगं रसं।
ससक्खं न पिबे भिक्खू जसं सारक्खमप्पणो॥ इन्द्रियों को वश में रखने वाला मुनि अपने संयम रूप विमल यश की रक्षा करता हुआ, सुरा, मेरक आदि नाना प्रकार के मादक द्रव्यों का आत्म-साक्षी से त्याग करदें अर्थात् उनका सेवन (पान) न करे॥३८॥ PROHIBITION OF INTOXICATION
38. An ascetic desirous of disciplining his senses should, employing his self-control, try to protect his discipline by not consuming alcohol or various other types of intoxicating things. विशेषार्थ :
श्लोक ३८. ससक्खं-स्वसाक्ष्यं-आत्म-साक्षी का अर्थ है अपनी संयम प्रवृत्त आत्मा की साक्षी में। संयम ग्रहण करते समय केवली भगवान की साक्षी मानी जाती है, अतः यहाँ आत्म-साक्षी का अर्थ केवली भगवान की साक्षी भी किया जाता है। १८४
श्री दशवैकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
S
Suuwal
CE
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org