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18, 19. If a donor woman proceeds to give food to an ascetic touching different varieties of lotus or other flowers, it is not proper for him to accept such food. So a disciplined ascetic should inform the woman that he is not allowed to accept such food and therefore he cannot take it.
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२० सालुअं वा विरालिअं कुमुउप्पलनालियं । मुणालिअं सासवनालिअं उच्छुखंडं अनिव्वुडं ॥
२१ : तरुणगं वा पवालं रुक्खस्स तणगस्स वा । अन्नस्स वा वि हरिअस्स आमगं परिवज्जए ||
कमल का कन्द, पलाश का कन्द, श्वेत कमल की नाल, नील कमल की नाल, कमल के तन्तु, सरसों की नाल और गन्ने की गनेरियाँ ये सब सचित्त पदार्थ हैं अतः साधु को ग्रहण करना नहीं कल्पता । वृक्ष का, तृण का तथा अन्य किसी दूसरी वनस्पति का तरुण प्रवाल ( नई कोंपल) यदि कच्चा है तो मुनि उस सचित्त पदार्थ को ग्रहण न करे ॥२०-२१ ॥
20, 21. Lotus root, palash (a flower) root, lily stalk, lotus stalk, lotus bulb, mustard bunch and sugar-cane are all sachit things and so it is not proper for an ascetic to accept them. He should also not accept fresh sprouts of trees, grass or other vegetation while it is still raw.
विशेषार्थ :
श्लोक २०-२१. सालुयं-कमलकन्द या कमल की जड़ । विरालियं - पलाशकन्द या पलाश की जड़ ।
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मुणालयं - मृणालिका - कमल नाल |
सासवनालियं - सरसों की नाल |
तणस - तृण- इसके विभिन्न टीकाकारों ने विभिन्न अर्थ लिए हैं। जिनदासचूर्णि में अर्जक और मूलक अर्थ किया है। अगस्त्यसिंह इसे मधुर तृण बताते हैं जो लाल गन्ना अथवा चावल हो सकता है। यह भी संभव है कि यह तृणद्रुम का संक्षेप हो, इस श्रेणी में नारियल, ताल, खजूर, केतक, छुहारे आदि के वृक्ष आते हैं।
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श्री दशवैकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
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