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द्वार पर खड़े याचकों को लाँघकर जाने से एक तो याचकों को, दाता को, तथा याचक और दाता दोनों को अप्रीति उत्पन्न होगी और आर्हत् प्रवचन (जिनशासन) की लघुता ( निन्दा ) होगी। गृह स्वामी के द्वारा उन्हें दान देने का निषेध कर देने या दान के बाद जब वे श्रमण, ब्राह्मण आदि याचक लोग उस स्थान से लौट जायें तब साधु आहार -पानी आदि के लिये उक्त घर में भिक्षा के लिए प्रवेश करे ।१२-१३ ॥
१३ : पडिसेहिए व दिन्ने वा तओ तम्मि नियत्तिए । उवसंकमिज्ज भत्तट्ठा पाणट्ठाए व संजए ॥
12, 13. This pushing ahead will provoke the antagonism of the seekers as well as the donor. Besides this, it will also reflect badly on the ascetic organization or the word of the Jina. When the donor either gives them alms or refuses to do so and the seekers leave that place, only then should the shraman enter that household to seek alms.
सचित्त आहार वर्जन
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१४ : उप्पलं पउमं वावि कुमुअं वा मगदंतिअं । अन्नं वा पुष्फसच्चित्तं तं च संलुंचिया दए ॥
दान देने वाली स्त्री, उत्पल (नील कमल ) का, पद्म (रक्त कमल ) का, कुमुद (चन्द्र विकाशी श्वेत कमल) का, मगदन्तिका ( मालती पुष्प) को तथा अन्य भी ऐसे ही सचित्त पुष्पों का यदि छेदन-भेदन करके आहार -पानी देने लगे तो वह आहार-पानी साधुओं को अकल्पनीय होता है। अतः साधु देने वाली से कह दे कि यह आहार-पानी लेना मुझे कल्पता नहीं है, इसलिये मैं नहीं ले सकता । ४-१५॥
PROHIBITION OF SACHIT FOOD
14, 15. If a donor woman proceeds to give food to an ascetic immediately after piercing holes into different
श्री दशवैकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
१५ : तं भवे भत्तपाणं तु संजयाण अकप्पिअं । दितिअं पडिआइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥
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