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(4) Pramanatikrant-over eating.
(5) Karanatikrant-to eat for a purpose other than those prescribed for an ascetic. The prescribed ones are six in number
(1) to satisfy hunger, (2) to serve the acharya and seniors, (3) to al facilitate movement, (4) to observe discipline, (5) to survive, and (6) to pursue the spiritual path. १00 : दुल्लहा उ मुहादाई मुहाजीवी वि दुल्लहा।
मुहादाई मुहाजीवी दो वि गच्छंति सुग्गइं॥ इस संसार में, निःस्वार्थभाव से देने वाले दाता और निःस्वार्थ बुद्धि से लेने वाले साधु-दोनों ही दुर्लभ हैं। अतः ये दोनों ही सत्पुरुष उच्च सद्गति को प्राप्त करते हैं ॥१00॥
100. In this world an unselfish donor and selfless seeker of food both are rare. These two class of pious individuals attain a higher and good rebirth. विशेषार्थ:
मुहादाई-मुधादायी-प्रतिफल की कामना के बिना निःस्वार्थभाव से देने वाला। फल की कामना सहित दिया दान-दान नहीं, आदान-प्रदान है या विनिमय है। मुधादायी का एक रोचक दृष्टान्त इस प्रकार है
एक संन्यासी एक गृहस्थ के पास आकर बोला-“मैं तुम्हारे यहाँ चातुर्मास व्यतीत करना चाहता हूँ। मुझे विश्वास है कि तुम मेरे निर्वाह का भार वहन कर सकोगे।" भक्त ने कहा“आप मेरे यहाँ वर्षाकाल बिता सकते हैं किन्तु मेरी भी एक शर्त है कि आप मेरे घर का कोई भी काम नहीं करेंगे।" साधु ने शर्त मान ली और उसके यहाँ ठहर गया। भक्त उसकी सब प्रकार से सेवा करने लगा। ___एक रात भक्त के घर चोर आए और गृहस्थ का घोड़ा चुरा लिया। रात में ही उसे ले जाकर नदी-तट के एक पेड़ से उसे बाँध दिया। संन्यासी सुबह अपनी नियमित चर्यानुसार
स्नान करने नदी पर गया, वहाँ उसने गृहस्थ के घोड़े को पेड़ से बँधा देखा। संन्यासी से रहा 2 नहीं गया और वह झट से गृहस्थ के घर लौटा। वहां पहुंच अपना
बोला-“मैं नदी-तट पर अपने कपड़े भूल आया हूँ।" गृहस्थ ने अपने नौकर को दौड़ा दिया जा कपड़े ले आ। नौकर ने जब घोड़े को वृक्ष से बँधा देखा तो वह घोड़ा खोल लाया और
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श्री दशवैकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
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