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जीवों की विराधना हो जाने की आशंका जुड़ी रहती है। संयतात्मा महामुनि, पूर्वोक्त महादोषों को अच्छी प्रकार से जानकर कदापि मालापहृत अर्थात् ऊपर के मकान से सीढ़ी आदि से उतारकर लाई हुई भिक्षा ग्रहण नहीं करते॥६८-६९॥ ___68, 69. There is a chance that such climbing might be painful or that a fall might occur during climbing resulting in hurt or the fracture of bones or harm to earth bodied and other beings. The disciplined shramans, being well aware of these gross faults, do not accept such food brought down from
higher places. विशेषार्थ : ___ श्लोक ६८, ६९. मालोहडं-मालापहृत-अन्य स्थल स्तर से लाया हुआ। इस दोष के तीन प्रकार हैं-(१) ऊर्ध्व-मालापहत-ऊपर से उतारा हुआ, (२) अधो-मालापहृत-तलघर से लाया हुआ, तथा (३) तिर्यग्-मालापहृत-ऊँडे बर्तन या कोठे आदि में से झुककर निकाला हुआ। टीकाकार का मत है कि यहाँ केवल ऊर्ध्व-मालापहृत का ही निषेध है। (दसवेआलियं, पृ. २४२) आचार्यश्री आत्माराम जी म. के मतानुसार यह उत्सर्ग सूत्र है। अपवाद मार्ग में द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव का विचार कर श्रमण उचित आचरण करे। (दशवै., पृ. २०८) ELABORATION:
(68, 69) Malohadam—brought from a different level. This is of three types—(1) brought down from a higher level, (2) brought up from a lower level, and 3. taken out from a deep vessel by bending into it. The commentator infers that here the negation is only for the things brought down from higher level. (Dashavaikalik by Acharya Mahaprajna, page 242) According to Acharyashri Atmaram ji M. this is an optional rule meant only for the ascetics at a higher level of discipline. The ordinary ascetic should take a decision based on the prevailing situation. (Dashavaikalik Sutra, page 208)
७0 : कंदं मूलं पलंबं वा आमं छिन्नं व सन्निरं।
तुंबागं सिंगबेरं च आमगं परिवज्जए॥
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श्री दशवैकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
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