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SCLIMILLER
विशेषार्थ :
श्लोक ७६. मईए-मत्या-मति, बुद्धि, ज्ञान अथवा तर्क की कसौटी पर खरा उतरे वह। इसमें परम्परागत अनुभव का महत्त्वपूर्ण स्थान है, जैसे-प्रायः धोवन कब और कैसे तैयार होता है ? ग्रहण करने के समय उसे तैयार हुए कितना समय बीत चुका है ? आदि।
दंसणेण-देख-जाँचकर। सामान्य तथा धोवन के जल आदि को देख-जाँचकर निर्णय करना कि कल्पता है या नहीं।
पडिपुच्छिऊण-पूछकर-दानदाता से सम्यक् जानकारी प्राप्त कर।
सुच्चा-सुनकर। शंका समाधान के सभी माध्यमों का उल्लेख साधु को अपनी मर्यादापालन में पूर्णतया स्थिर रहने के लिए किया है। ELABORATION: ___(76) Maiye-that which has been examined by wisdom, knowledge, experience and logic, and found acceptable. Traditional experience plays an important role here. Information such as when or how a wash is prepared, or how much time must elapse before it becomes acceptable, is very helpful.
Damsanena—by seeing and examining; to decide if it is acceptable or not by seeing and examining ordinary or wash water.
Padipucchiun--after asking; after getting all and correct information from the doner.
Succha-after hearing or listening. The mention of all possible means of examining is to place emphasis on being steadfast in observing discipline.
७७ : अजीवं परिणयं नच्चा पडिगाहिज्ज संजए।
___अह संकियं भवेज्जा आसाइत्ताण रोयए॥ साधु, अजीव भावपरिणत अर्थात् जीवरहित पूर्ण प्रासुक जल ही ग्रहण करे। यदि किसी अन्य प्रासुक जल के विषय में यह शंका हो जाय कि यह जल मेरी प्रकृति या स्वास्थ्य के अनुकूल नहीं पड़ेगा तो चखकर लेने-न लेने का निर्णय करे॥७७॥ पंचम अध्ययन : पिण्डैषणा (प्रथम उद्देशक) Fifth Chapter : Pindaishana (Ist Section) १४७
CLITTITURE
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