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77. An ascetic should accept only the water that has been rendered completely free of living organisms. If there is some doubt about some achit water, namely that it could be unsuitable to his system or health, he should decide to accept it only after tasting. विशेषार्थ :
श्लोक ७७. संकियं भविज्ज-शंका हो जाने पर। शंका के विषय में आचार्यश्री आत्माराम जी महाराज स्पष्ट करते हैं कि यदि यह शंका हो जाय कि यह जल दुःस्वाद--विरसअरुचिकर है अतः यह मेरी शारीरिक प्रकृति के अनुकूल नहीं होगा तो उस जल को चखकर अपनी शंका मिटानी चाहिये। शरीर की उपमा यंत्र से दी जाती है। यदि यह शरीर यंत्र अव्यवस्थित हो जाता है अर्थात् अस्वस्थ हो जाता है तो आत्मा के उत्थान के लिए धार्मिक क्रियाएँ करने में असमर्थ हो जाता है। अतः साधु को खान-पान के विषय में सदा सतर्क रहना चाहिए। चखकर शंका मिटाना इस सावधानी का ही एक अंग है अतः दूषण नहीं है। ELABORATION: ___(77) Sankiyam bhaviija-if there is any doubt; Acharyashri Atmaram ji M. has given importance to removing even the slightest doubt before accepting. He equates the body to a machine. If this machine is disturbed, it will be unable to perform necessary tasks for spiritual uplift. So an ascetic should be very careful about matters of food intake. Tasting in order to remove doubt is a part of this caution.
७८ : थोवमासायणट्ठाए हत्थगम्मि दलाहि मे।
____ मा मे अच्चंबिलं पूई नालं तण्हं विणित्तए॥ (साधु दाता से कहे) हे बहन ! चखने के लिये थोड़ा-सा पानी मुझे हाथ में दे। क्योंकि बहुत खट्टा, सड़ा हुआ, प्यास नहीं मिटाने वाला जल मुझे अनुकूल नहीं,
अतः वह ग्रहण योग्य नहीं है।॥७८।। ___78. (The ascetic should address the donor,) “Sister! Please pour a little water in my palm for tasting, because excessively १४८
श्री दशवैकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
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