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करके गृहस्थ की आज्ञा लेकर अपने शरीर के अवयवों का भली प्रकार से प्रमार्जन करके छायादार स्थान पर बैठकर उपयोगपूर्वक भोजन करे॥८२-८३॥. HOW TO EAT FOOD ?
82, 83. If an ascetic, who has gone into some village to seek alms, is for some reason forced to eat there only, he should find some proper and shaded spot in an isolated room or near a wall, inspect and clean the ground, seek permission from the owner, wipe clean his limbs, sit down and eat with discipline. विशेषार्थ :
श्लोक ८२, ८३. सामान्यतया साधु को गोचरी से वापस उपाश्रय में आकर भोजन करना चाहिये। परन्तु जो साधु दूसरे गाँव में भिक्षा लेने जावे और वह बालक, बूढ़ा, भूख से पीड़ित तपस्वी प्यासा आदि हो तो उपाश्रय में लौटने से पहले ही सीमित आहार कर सकता है यह ऐसी ही अपवाद-स्थिति के नियम हैं (श्लोक ८२-८६)।
भित्तिमूलं-दो घरों के बीच का भाग, दीवार की जड़ अथवा कोना।
अणुन्नवेत्तु-अनुज्ञाप्य-अनुज्ञा प्राप्त करने की विधि इस प्रकार है-“हे श्रावक ! तुम्हें धर्मलाभ है। मैं मुहूर्त भर यहाँ विश्राम करना चाहता हूँ''-साधु इस प्रकार कहे। ऐसा न कहे कि खाना-पीना चाहता हूँ, क्योंकि वैसा कहने से श्रावक कौतूहलवश वहाँ आने की चेष्टा कर सकता है।
हत्थगं-हाथ में रहा झाड़ने-पोंछने का वस्त्र अथवा छोटा रजोहरण या पूँजनी। महत्त्वपूर्ण क्रिया प्रमार्जन की है, चाहे वह रजोहरण से किया जाय अथवा अन्य वस्त्र द्वारा। इसका उद्देश्य है शरीर पर पड़े सूक्ष्म जीव तथा धूल आदि पदार्थ उतार दिये जावें और भोजन के समय शरीर शुद्ध तथा निराकुल रहे। ELABORATION:
(82, 83) Normally a shraman should bring back the food to his place of stay (upashraya) and eat there only. However, if the shraman is a child, aged, extremely hungry and thirsty due to fasting or sick, he is allowed to eat out in limited quantity. These are the rules for exceptional circumstances (82 to 86).
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श्री दशवैकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
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