________________
untu
IMI (एकफली विशेष) फल, तिन्दुक (तेंद) फल, बिल्व (बेल) फल, गन्ने की गनेरियाँ
तथा फलियाँ आदि ऐसे पदार्थ जिनमें खाने लायक भाग तो थोड़ा हो और फेंकने लायक भाग अधिक हो तो साधु ऐसा आहार ग्रहण न करे और दाता से स्पष्ट कह दे कि ये पदार्थ मेरे योग्य नहीं, अतः मैं नहीं ले सकता ॥७३-७४॥
73, 74. If an ascetic is offered fruits with many seeds, scales, thorns, asthik, tinduk and bilva fruits, sugar-cane slices, pods or other such fruits or vegetables with little to eat and much to throw, he should refuse and tell the donor that he is not allowed to accept such food. विशेषार्थ : ___ श्लोक ७३, ७४. पुग्गलं-पुद्गल-जैन-साहित्य में यह एक विशिष्ट तथा बहु-प्रयुक्त शब्द है। सूक्ष्म कणों के ऐसे समूह को जो संगठित होने के कारण अपेक्षाकृत स्थूल बने उसे पुद्गल कहते हैं। यहाँ एक समूह रूप में-फल (गुठली, गूदा, छिलका, जैसे-आम, केला आदि), फल का गूदा बीज, रेशे, छिलका (त्वचा) दाने, जैसे-अनार, नारंगी) आदि अर्थों में प्रयोग किया गया है।
इस श्लोक में आये हुए बहुअट्ठियं तथा अणिमिसं शब्द माँसपरक अर्थ की भ्रान्ति पैदा करते हैं। अनेक विद्वान् इस भ्रान्ति के शिकार हो चुके हैं। आचार्यश्री आत्माराम जी म. ने अपनी असंदिग्ध भाषा-शैली में अनिमिसं का स्पष्ट अर्थ वनस्पति फल-विशेष किया है। उनका तर्क है कि श्लोक के अगले चरण में बेल, ईख आदि फलों का स्पष्ट ही उल्लेख है अतः एक ही प्रकरण में फल के साथ माँस का अर्थ करना प्रकरण विरुद्ध है। फिर यहाँ मुनि के लिए निर्दोष-भिक्षा का प्रकरण चल रहा है, वहाँ पर माँस का विधान कैसे हो सकता है ? बहुत-सी वनस्पतियाँ ऐसी हैं जिनके नाम पशु, पक्षी तथा मनुष्यों के नाम पर होते हैं, जैसे-ब्राह्मणी, कुमारी, मार्जारी, कापोती। आयुर्वेद में ये फल व वनस्पति हैं। इनका अर्थ फलपरक करने के स्थान पर यदि मानव व पशु-पक्षी कर देंगे तो अनर्थ हो सकता है। (देखें-दशवैकालिक आचार्यश्री आत्माराम जी. म., पृ. २१२) ELABORATION: ___(73, 74) Puggalam-this is a term much used in Jain literature. It means a comparatively large cluster made up of minute particles. Here it has been used for gross things made up of
१४४
श्री दशवैकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org