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魚豐路五
SANIL
Nikkhittam-placed in contact with. This contact is of two types (1) Direct contact, such as butter being stored in a bowl of water. (2) Indirect contact, as when a bowl containing food is placed in a larger bowl containing water in order to protect it from insects.
६१ : असणं पाणगं वावि खाइमं साइमं तहा । तेउम्मि हुज्ज निक्खित्तं तं च संघट्टिया दए ॥ ६२ : तं भवे भत्तपाणं तु संजयाण अकप्पिअं । दितिअं पडिआइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥
यदि अशन आदि चारों प्रकार का आहार अग्नि पर रखा हुआ हो अथवा दाता अग्नि से संपर्क करके देवे तो साधु को वह पदार्थ नहीं लेना चाहिये और दाता से कह देना चाहिये कि यह आहार मेरे ग्रहण करने योग्य नहीं है अतः मैं नहीं ले सकता ॥ ६१-६२॥
61, 62. If the food is placed on fire or the donor gives some food after touching a thing in contact with fire, then it is not proper for a shraman to accept such food. So a disciplined ascetic should inform the woman that he is not allowed to accept such food.
विशेषार्थ :
श्लोक ६१, ६२. संघट्टिया - संघट्य - सम्पर्क करके अथवा छूकर । साधु को भिक्षा दूँ उतने समय में रोटी आदि जल न जाय, दूध आदि उफन न जाय, यह सोचकर रोटी आदि को पलटकर, दूध आदि को नीचे उतारकर अथवा किसी कारण से जलते ईंधन को छूकर बहराना संघट्य दोष है।
ELABORATION:
(61, 62) Sanghattiya-touching. Shifting or taking a thing off from a fire or also touching the other end of burning wood or stirring embers, in order to facilitate giving alms to an ascetic. This
पंचम अध्ययन : पिण्डैषणा (प्रथम उद्देशक) Fifth Chapter: Pindaishana ( Ist Section) १३९
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