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५६ : उग्गमं से अ पुच्छिज्जा कस्सट्ठा केण वा कडं।
सुच्चा निस्संकियं सुद्धं पडिगाहिज्ज संजए॥ पूर्वोक्त आहारादि के विषय में शंका हो जाने पर साधु दाता से उस आहार की उत्पत्ति के विषय में पूछे कि यह आहार किसलिए और किसने तैयार किया है ? इस प्रकार पूछने पर यदि वह आहार शंकारहित एवं निर्दोष जान पड़े तो साधु ग्रहण करे अन्यथा नहीं॥५६॥
56. If an ascetic has some doubt about any of these types of food, he should ask about its source as well as by whom and for whom it was cooked. When informed, if he is convinced that the food is faultless he may accept, otherwise not. ५७ : असणं पाणगं वावि खाइमं साइमं तहा।
पुप्फेसु हुज्ज उम्मीसं बीएसु हरिएसु वा॥ ५८ : तं भवे भत्तपाणं तु संजयाण अकप्पियं।
देंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं॥ ___ यदि आहार-पानी, खाद्य तथा स्वाद्य पदार्थ पुष्पों से, बीजों से तथा वनस्पति
आदि से मिश्रित हों तो वह अन्न-पानी साधु के ग्रहण करने योग्य नहीं होता है। अतः देने वाली स्त्री से साधु स्पष्ट कह दे कि यह पदार्थ मुझे लेना नहीं कल्पता है॥५७-५८॥
57, 58. If some food is mixed with flowers, seeds or other vegetables, then it is not proper for a shraman to accept such food. So a disciplined ascetic should inform the woman that he is not allowed to accept such food. विशेषार्थ :
श्लोक ५७, ५८. उम्मीसं-उन्मिश्र-साधु को देने योग्य शुद्ध आहार को न देने योग्य अशुद्ध आहार (सचित्त या मिश्र) में मिलाकर दिया जाये अथवा जो अचित्त आहार सहज ही सचित्त अथवा मिश्र आहार से मिला हुआ हो उसे उन्मिश्र कहते हैं।
पंचम अध्ययन : पिण्डैषणा (प्रथम उद्देशक) Fifth Chapter : Pindaishana (Ist Section)
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mymavad
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