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CILPHm
Gurum
Bhante! I hereby abstain completely from keeping any possession. Wherever I am, in a village, city or forest; whether the object less or more, minute or gross, living or non-living; I will not keep any possession; neither will I induce others to do so, or approve of others doing so. All my life I will observe this great vow through three means and three methods. In other words, throughout my life I will, through mind, speech and body, neither do, induce others to do or approve of others doing such an act of keeping any possession.
Bhante! I critically review any such act of keeping any possession done in the past, denounce it, censure it and earnestly desist from indulging in it.
Bhante! I have now taken the fifth great-vow in which one completely abstains from keeping any possession.
१६. अहायरे छठे भंते ! वए राइभोयणाओ वेरमणं।
सव्वं भंते ! राइभोयणं पच्चक्खामि-से असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा, नेव सयं राई भुंजिज्जा नेवन्नेहिं राइं भुंजाविज्जा राइं भुंजते वि अन्ने न समणुजाणामि जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करतं पि अन्नं न समणुजाणामि।
तस्स भंते ! पडिक्कमामि निन्दामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। छठे भंते ! वए उवढिओमि सव्वाओ राईभोयणाओ वेरमणं।
भन्ते ! इसके पश्चात् छठे व्रत में रात्रि-भोजन की विरति होती है। F भन्ते ! मैं सर्व प्रकार के रात्रि-भोजन का प्रत्याख्यान करता हूँ। रात्रि में कोई
भी अशन, पान, खाद्य व स्वाद्य वस्तु मैं स्वयं नहीं खाऊँगा, अन्यों को नहीं So खिलाऊँगा और खाने वालों का अनुमोदन नहीं करूँगा। यह मैं समस्त जीवन पर्यन्त र
तीन करण और तीन योग से पालन करूँगा। अर्थात् मैं जीवन पर्यन्त रात्रि-भोजन मन, वचन, काया से न करूँगा, न कराऊँगा, न करने वाले का अनुमोदन करूँगा। चतुर्थ अध्ययन : षड्जीवनिका Fourth Chapter : Shadjeevanika
THILITIT ANUSHMAN
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