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संयत आचरण
पलोइज्जा
नाइदूरावलो अए । उप्फुल्लं न विणिज्झाए नियट्टिज्ज अयंपिरो ||
२३ : असंसत्तं
साधु आसक्त होकर किसी ओर न देखे ; अति दूर से किसी चीज को न देखे, नेत्रों को फाड़-फाड़कर भी न देखे। यदि किसी घर से आहार न मिले तो बिना आलोचना अवहेलना किये घर से निकल आवे ॥ २३ ॥
PROPER CONDUCT
23. An ascetic should not look at something with yearning, from a distance or with wide eyes. If he does not get alms from anyone, he should leave without comment or any belittling gesture.
विशेषार्थ :
श्लोक २३. असंसत्तं पलोएज्जा - असंसक्तं प्रलोकेत - अनासक्त दृष्टि से देखे । गोचरी लेते समय साधु की दृष्टि जिस वस्तु पर भी पड़े- चाहे वह स्त्री हो अथवा अन्य आकर्षित कर लेने वाली वस्तु हो - उसके प्रति आसक्त न बने । आसक्त दृष्टि मन में विकार उत्पन्न करती है, साथ ही लोक आक्षेप को भी जन्म देती है, जबकि तटस्थ वृत्ति लोक - विश्वास को दृढ़ बनाती है।
उप्फुल्लं न विणिज्झाए - उत्फुल्लं न विनिध्यायेत् -विस्फारित नेत्रों से अथवा आँख फाड़कर न देखे। इसमें उत्सुकता, कौतूहल, आश्चर्य आदि भाव प्रकट होते हैं और मन में दोष न होते हुए भी लोग दोषी समझ सकते हैं।
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निअट्टिज्ज अयंपिरो - निवर्त्तेताऽजल्पाक - बिना कुछ कहे वापस चला जाय। साधु की शास्त्रोक्त चर्या है भिक्षा हेतु जाना किन्तु गृहस्थ की इच्छा है कि वह आहारदान करे अथवा नहीं । अतः अपना कर्त्तव्य करते समय अन्य की इच्छा - अनिच्छा की प्रशंसा अथवा निन्दा नहीं करनी चाहिए। किन्तु चुपचाप वहाँ से लौट आना चाहिए।
ELABORATION:
(23) Asamsattam paloejja — to look without yearning. An ascetic while seeking alms should not look at anything coveteously,
पंचम अध्ययन : पिण्डैषणा (प्रथम उद्देशक) Fifth Chapter: Pindaishana (Ist Section)
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