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AMIRPOWADI
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आहार-पानी साधु को अग्राह्य है। अतः देने वाली माता से कह दे कि इस प्रकार का आहार-पानी मुझे नहीं कल्पता है ।।४२-४३॥
42, 43. If a woman who is breast-feeding a child (boy or girl) puts that crying child on the floor and proceeds to give food to an ascetic, then he should not accept that food. He should inform the woman that he is not allowed to accept such food. विशेषार्थ :
श्लोक ४२, ४३. इस नियम को अधिक स्पष्ट करते हुए आचार्यश्री आत्माराम जी महाराज कहते हैं-इस निषेध का कारण शिशु के दुग्धपान में अन्तराय पड़ना तथा असावधानी से धरती पर रखने के कारण शिशु को हानि पहुँचने की संभावना है। स्थविरकल्पी या अपवादमार्गी साधु यदि शिशु स्तन-पान न कर रहा हो, उसे पीड़ा की संभावना न हो, गोद से उतारने से रुष्ट न होता हो तो आहार-पानी ग्रहण कर सकता है किन्तु जो जिनकल्पी या उत्सर्गमार्गी साधु हैं वे ऐसा नहीं कर सकते। किन्तु अपवादमार्गी साधु को भी अपने द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव का पूर्ण विचार करके ही उचित मार्ग का आश्रय लेना चाहिए।
ELABORATION:
(42, 43) Clarifying this rule Acharyashri Atmaram ji M. saysThe reason for this negation is that the arrival of the ascetic interrupts the feeding of the baby, causing him inconvenience. Also there are chances of harm to the child due to putting it on the floor in a hurry. The sthavir kalpi shraman may accept such food if the child is not being fed or does not cry when placed on the floor. But the jina kalpi ascetic strictly refuses to accept. Even the ordinary ascetic who follows the relaxed codes should examine the situation on the basis of the matter at hand, area, time and attitude of those involved. कल्प-अकल्प का निश्चय करे
४४ : जं भवे भत्तपाणं तु कप्पाकप्पम्मि संकिअं।
दितिअं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं॥ पंचम अध्ययन ः पिण्डैषणा (प्रथम उद्देशक) Fifth Chapter : Pindaishana (Ist Section) १२९
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