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AMMADIWAN
अन्न-पानी खाद्य और स्वाद्य पदार्थ के विषय में साधु ने स्वयं या अन्य किसी
से सुनकर यदि यह जान लिया हो कि वह पदार्थ पुण्य के वास्ते बनाया गया है, KH तो वह अन्न-पानी साधु के लिए अग्राह्य है। अतः साधु दानकर्ता से कह दे कि SS Tea मुझे इस प्रकार का अन्न-पानी लेना नहीं कल्पता है॥४९-५०॥
49, 50. If an ascetic has heard or otherwise become aware that some food has been specifically prepared for the purpose of earning meritorious karma, then it is not proper for him to accept such food. So a disciplined ascetic should inform the woman that he is not allowed to accept such food. विशेषार्थ :
श्लोक ४९, ५0. पुण्णट्ठा पगडं-पुण्यार्थप्रकृतं-पुण्य होने के प्रयोजन से बनाया गया। दानार्थ तथा पुण्यार्थ शब्द पर्यायवाची होते हुए भी सूक्ष्म अन्तर है। दान प्रायः यश-कीर्ति व सहायता आदि के लिए किया जाता है और पुण्य प्रायः परलोक सुधारने के लिए। ग्रहण, संक्रान्ति आदि पर्व तिथियों पर प्रायः पुण्य की भावना से विशेष अशन पान आदि बनाया जाता है।
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ELABORATION:
(49, 50) Punnattha pagadam-prepared for the purpose of earning meritorious karmas. Generally speaking the terms daanarth and punyarth are synonymous. However, there is a slight difference in meaning. Daan is a form of charity that is generally done to earn name and fame, whereas punya is a form of charity done to earn meritorious karmas in order to gain a good rebirth. This is generally done on some specified occasions like a day of eclipse, a day of some astrological conjunction and also on some festival days. ५१ : असणं पाणगं वावि खाइमं साइमं तहा।
जं जाणिज्ज सुणिज्जा वा वणिमट्ठा पगडं इमं॥ ५२ : तं भवे भत्तपाणं तु संजयाण अकप्पि।
दिति पडिआइक्खे न मे कप्पइ तारिसं॥ पंचम अध्ययन : पिण्डैषणा (प्रथम उद्देशक) Fifth Chapter : Pindaishana (Ist Section) १३३
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Pumitha
Autum
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