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MUTTORY
४८ : तं भवे भत्तपाणं तु संजयाण अकप्पिी
दितिअं पडिआइक्खे न मे कप्पइ तारिसं॥ अन्न-पानी, खाद्य वा स्वाद्य पदार्थ के विषय में साधु ने जान लिया हो अथवा सुन लिया हो कि यह पदार्थ दान के लिए ही तैयार किया गया है, तो इस प्रकार का (दानार्थ) अन्न-पानी साधुओं को लेना उचित नहीं है। अतः विवेकवान साधु देने वाली स्त्री से स्पष्ट कह दे कि इस प्रकार का अन्न-पानी लेना मुझे नहीं कल्पता है॥४७-४८॥
47, 48. If an ascetic has heard or otherwise become aware of the fact that some food has been specifically prepared for the purpose of charity, it is not proper for him to accept such food. So a disciplined ascetic should inform the woman that he is not allowed to accept such food. विशेषार्थ : ___श्लोक ४७, ४८. दाणट्ठा पगडं-दानार्थप्रकृतं-दान देने के प्रयोजन से बनाया गया। हमारे सामाजिक जीवन में ऐसे अनेक अवसर आते हैं जब दान देने के विशिष्ट उद्देश्य से भोजन पकाया जाता है। ऐसे बहुत से याचकादि होते हैं जिनकी जीविका का यही साधन बन जाता है। उनके निमित्त बनाया भोजन ग्रहण करने से उनको अन्तराय पड़ता है। ELABORATION: ____ (47, 48) Danattha pagadam-prepared for the purpose of charity. In our social life there are numerous occasions when food is prepared for the welfare of destitute. There are many poor people ka who live only on such food. If an ascetic takes some food out of this, then he deprives someone of his source of survival. And so such food is akalpya for a shraman. ४९ : असणं पाणगं वावि खाइमं साइमं तहा।
जं जाणिज्ज सुणिज्जा वा पुण्णट्ठा पगडं इमं॥ ५० : तं भवे भत्तपाणं तु संजयाण अकप्पि।
दितिअं पडिआइक्खे न मे कप्पइ तारिसं॥
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श्री दशवैकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
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