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mundane viewpoint, parameters like place, time, situation, age, etc., and norms connected with them, are also taken into consideration before deciding what is acceptable. (Prashamrati Prakaran 143)
२८ : आहरंती सिया तत्थ परिसाडिज्ज भोयणं।
दितिअं पडिआइक्खे न मे कप्पइ तारिसं॥ देने वाली स्त्री कदाचित् इधर-उधर गिराती हुई भोजन लावे तो साधु उसे यह कहे कि "बहन, यह भोजन लेना मुझे नहीं कल्पता है।" अर्थात् उसके हाथ से न लेवे॥२८॥
28. If, while bringing food, a woman spills it around, the ascetic should say—“Sister! I am not allowed to accept such _ food.” In other words, he should not accept food from her.
२९ : संमद्दमाणी पाणाणि बीआणि हरिआणि य।
असंजमकरि नच्चा तारिसिं परिवज्जए॥ प्राणियों को, बीजों को और वनस्पति को कुचलती हुई स्त्री को असंयमकरी जानकर साधु उसके हाथ से भी आहार-पानी न लेवे।॥२९॥
29. An ascetic should also not accept food from a woman who, while bringing food, crushes insects, seeds or vegetables; he should consider her to be undisciplined. विशेषार्थ : ___ श्लोक २९. असंजमकरि-असंयमकरी-असंयम करने वाली/वाला। भिक्षा देने से पूर्व अथवा भिक्षा देने के लिए आते समय किसी प्रकार का असंयम (हिंसा) करने वाले से साधु भिक्षा न ले। असंयम का संक्षिप्त विवरण उक्त गाथा में है। आचार्य श्री आत्माराम जी महाराज इसका महत्त्व बताते हुए कहते हैं-“साधु यदि असंयमकरी स्त्री के हाथ से आहार-पानी ग्रहण कर लें तो उन्हें असंयम का दोष तो लगेगा ही, इसके अलावा असंयम की अनुमोदना का भी दोष लगे बिना न रहेगा।"
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श्री दशवैकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
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