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२७ : तत्थ से चिट्टमाणस्स आहरे पाणभोयणं । अकप्पियं न गिहिज्जा पडिगाहिज्ज कप्पिअं ॥
उस स्थान पर खड़ा हुआ साधु भोजन पानी स्वीकार करे। यदि वह कल्पता नहीं हो तो ग्रहण न करे, किन्तु यदि कल्पता हो तो ग्रहण कर लेवे ॥२७॥
27. Standing at such place the ascetic should accept food and water. He should take only what is proper (kalp) for him and not what is not proper (akalp) for him.
विशेषार्थ :
आचार,
श्लोक २७. अकप्पियं, कप्पियं-अकल्पिकं, कल्पिकं - कल्प का अर्थ है शास्त्र, नीति, मर्यादा, विधि, समाचारी आदि से सम्मत । अतः कल्प्य अथवा कल्पिक का अर्थ है। उक्त नीति आदि से युक्त ग्राह्य, करणीय और योग्य । साधु को जिन नियमों तथा मर्यादाओं का पालन करना होता है उनके अनुसार जो लेने या करने योग्य हो वह कल्प्य या कल्पिक है। जैनागमों के अनुसार साधु को भिक्षा सम्बन्धी बयालीस दोषों से मुक्त भिक्षा लेना कल्पता है। आचार्य उमास्वाति के अनुसार- जो कार्य ज्ञान, शील और तप का उपग्रह ( वृद्धि ) और दोषों का निग्रह करता है, वह निश्चयदृष्टि से कल्प्य है तथा शेष अकल्प्य है साथ देश, काल, पुरुष अवस्था व भावना की समीक्षा करके ही कल्प्य अकल्प्य का निर्णय किया जाता है । (प्रशमरति प्रकरण, गा. १४३ )
ELABORATION:
(27) Akkapiyam, kappiyam-Kalp means that which is proper according to the scriptures, ethics, codes of conduct, rules, methodology, essentials of routine, etc. Accordingly, kapppiya means that which is acceptable according to these rules. With regard to an ascetic this refers specifically to the ascetic norms and codes of conduct. According to Jain canons, the only things that are acceptable to an ascetic are those that are free of 42 listed faults connected with seeking alms. According to Acharya Umaswati the act that enhances knowledge, virtues and austerity is kalpya, i.e., acceptable from the spiritual viewpoint, while all else is unacceptable or akalpya. From the empirical and behavioral or पंचम अध्ययन : पिण्डैषणा (प्रथम उद्देशक) Fifth Chapter: Pindaishana (Ist Section) ११९
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