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Gautam
विशेषार्थ :
श्लोक ३५. पच्छाकम्म-पश्चात्-कर्म-जिस वस्तु की हाथ अथवा शरीर के अन्य अंग अथवा बर्तन पर चिपकने की, लेप लग जाने की संभावना हो और फिर हाथ धोना पड़े, वैसी वस्तु देने पर पश्चात् कर्म-दोष लगता है। कारण कि भिक्षा देने के लिए जो हाथ, बर्तन आदि आहार से लिप्त हो गये हों उन्हें गृहस्थ सचित्त जल से धोता है। ऐसे पश्चात्-कर्म की संभावना होने पर बिना सने हाथ या कड़छी से भी आहार लेने का निषेध है। अलेपकृत आहार के सम्बन्ध में पिण्डनियुक्ति में कहा गया है-पश्चात्-कर्म दोष की संभावना न रहे अतः मुनि अलेपकृत जो चुपड़ा न हो, रूखा हो, ऐसा आहार लेवे। इसके समाधान में चूर्णिकार कहते हैं-“आवश्यक होने पर मुनि चुपड़ा सलेप आहार भी ले सकता है, किन्तु शर्त यही है कि वहाँ पश्चात्-कर्म दोष की संभावना न हो। (देखें विस्तार के लिए आचार्य श्री महाप्रज्ञ दशवै., पृ. २३०-२३१) ELABORATION:
(35) Pacchakammam-consequent faults. If, while serving a thing, the hands or serving vessels get soiled and have to be washed and cleaned, it is known as a consequent fault. This is because the householder generally washes these things with sachit water. An ascetic is not allowed to accept such food, even if it is given with unsoiled hands. In Pind-Niryukti it is stated that to avoid this fault ascetics should take only dry and oil-free food. However, the commentators clarify that an ascetic may take oily food provided he avoids the chances of such consequent faults. (for more details see Dashavaikalik Sutra by Acharya Mahaprajna, page 230-231)
३६ : संसद्वेण य हत्थेण दव्वीए भायणेण वा।
दिज्जमाणं पडिच्छिज्जा जं तत्थेसणियं भवे॥ संसृष्ट हाथ, कड़छी तथा भाजन से दिया हुआ अन्न-पानी यदि निर्दोष होवे तो साधु ग्रहण कर सकता है॥३६॥
36. An ascetic can accept food when it is served with soiled hands or serving vessels but is free of the above said faults or acceptable according to the codes.
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श्री दशवकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
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