________________
SRA
HINA
THRITI
AMIRIRAMA
विशेषार्थ :
श्लोक ३७. भुंजमाणाणं-स्वामी अथवा खाने वाला-एक वस्तु के दो स्वामी हों अथवा एक ही भोजन के दो खाने वाले हों तो दोनों व्यक्तियों की मनःस्थिति देने की हो तभी आहार लेवे, यदि एक नहीं देना चाहे तो वह आहार न लेवे।
पडिलेहए-देखकर समझे और दाता की इच्छा को जाने। साधु को दूसरे स्वामी अथवा भोजन करने वाले के अभिप्राय को उसके मुख की चेष्टाओं या भाव से समझने का प्रयत्न करना चाहिए। यदि उसकी भी अनुमति हो, उसे कोई आपत्ति न हो, उसे भी भिक्षा देना अच्छा लगे तभी आहार ग्रहण करे अन्यथा नहीं।
ELABORATION: ___ (37) Bhunjamananam-plural of eater. This rule relates to a situation where the food is either owned by or meant for more than one person. An ascetic has to avoid becoming cause of harm to any of them.
Padilehaye—see and understand. An ascetic should observe the expression on the face of the joint owner and try to discern whether he has any objection. He should accept only when he is sure that both the owners are desirous of giving the food.
३८ : दुण्हं तु भुंजमाणाणं दोवि तत्थ निमंतए।
दिज्जमाणं पडिच्छिज्जा जं तत्थेसणियं भवे॥ यदि एक पदार्थ के भोगने वाले दोनों ही व्यक्ति साधु को आहार ग्रहण करने का निमन्त्रण करें तो, मुनि उस देते हुए पदार्थ को यदि वह शुद्ध-निर्दोष हो तो ग्रहण कर ले॥३८॥
38. If both the owners ask him to accept the food, then the ascetic should accept the food after ensuring that it is pure and acceptable.
३९ : गुठ्विणीए उवण्णत्थं विविहं पाणभोयणं।
भुंजमाणं विवज्जिज्जा भुत्तसेसं पडिच्छए॥
१२६
श्री दशवैकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
JIWITTER
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org