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भन्ते ! मैं अतीत में किये रात्रि-भोजन का प्रतिक्रमण करता हूँ, उसकी निन्दा करता हूँ, उसकी गर्दा करता हूँ और आत्मा द्वारा वैसी प्रवृत्ति का त्याग करता
___ भन्ते ! मैं छठे व्रत में उपस्थित हुआ हूँ। इसमें सर्व रात्रि-भोजन की विरति होती है।॥१६॥
16. Bhante! After this, the sixth vow is abstinence from eating during the night. ___Bhante! I hereby abstain completely from eating at night. I will not indulge in the act of eating during the night, whether it be ashan, paan, khadya or svadya; neither will I induce others to do so or approve of others doing so. All my life I will observe this great vow through three means and three methods. In other words, throughout my life I will, through mind, speech or body, neither do, induce others to do or approve of others doing such act of eating during the night.
Bhante! I critically review any such act of eating during the night done in the past, denounce it, censure it and earnestly desist from indulging in it.
Bhante! I have now taken the sixth vow in which one completely abstains from eating during the night. विशेषार्थ :
सूत्र १६. रात्रि-भोजन विरमण व्रत-पाँच महाव्रत का कथन करने के बाद छठे रात्रिभोजन विरमण व्रत को महाव्रतों से भिन्न बताने का कारण यह है कि पाँच महाव्रत मूल गुण हैं। रात्रि-भोजन विरमण उनकी रक्षा में सहायक होने से उत्तरगुण मानकर उसे छठा व्रत कह दिया है। वैसे रात्रि-भोजन का प्रायश्चित्त भी उतना ही कठोर है जितना मैथुन सेवन का। रात्रि-भोजन करने वाला श्रमण अहिंसा महाव्रत का भंग करता है तथा रात में आहार संग्रह करके अपरिग्रह महाव्रत का भी भंग करता है अतः इसका महाव्रतों के समान ही महत्त्व है। (विस्तार के लिए देखो दसवेआलियं युवाचार्य महाप्रज्ञ, अध्ययन ४ के टिप्पण, पृ. १४३-१४४)
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श्री दशवकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
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