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POWRIMAN
चित्र परिचय : १०
Illustration No. 10
गोचरी की विधि THE PROCEDURE OF BEGGING ALMS
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१. असंभंतो अमुच्छिओ-भिक्षा लेने का समय होने पर श्रमण मूर्छारहित भाव से गृहस्थ के घर से भिक्षा ग्रहण करे। अमूर्छा भाव को समझाने के लिए दृष्टान्त दिया है। जैसे-तरुणी बछड़े को भोजन देती है तो वह वत्स आहार लेते समय स्त्री के रंग-रूप आदि की तरफ आकर्षित/मूर्छित नहीं होता, केवल आहार लेने से ही उसका सम्बन्ध होता है, इसी प्रकार मुनि आहार देने वाली सुन्दरियों की तरफ से विरक्त रहकर भिक्षा ग्रहण करता है।
(अध्ययन ५, श्लोक १) 1. At proper time a shraman should visit householders and collect alms with a serene attitude and without any distractic The serene attitude is explained by giving an example. When a young woman feeds a calf it is least bothered about the complexion or beauty of the woman; it is only concerned about the food it gets. Similarly, an ascetic accepts alms in a state of complete indifference towards the person who gives.
(Chapter 5, verse 1) २. गोयरग्ग गओ मुणी-गोचरी के लिए गया हुआ मुनि ऊँचे-नीचे मध्यम परिवारों में सामुदानिक भाव से थोड़ा-थोड़ा आहार ग्रहण करे। गाय के घास चरने के दृष्टान्त द्वारा साधु की गोचरी में सामुदानिक और पर-पीड़ारहित वृत्ति समझायी गई है। (विशेषार्थ में देखें)।
(अध्ययन ५, श्लोक २) 2. A shraman out to collect alms should accept a little from every house he visits irrespective of the status of the householder. The shraman's desire not to cause inconvenience to others and his lack of any partiality towards anyone is explained by giving the example of the activity of grazing of cows. (see elaboration)
(Chapter 5, verse 2)
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