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PECILITRA
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२ : से गामे वा नगरे वा गोयरग्गगओ मुणी।
चरे मंदमणुव्विग्गो अव्वक्खित्तेण चेयसा॥ गोचराग्र में गया हुआ वह असंभ्रान्त मुनि ग्राम में, नगर में (या अन्य KA खेटकादि में) उद्वेगरहित और अव्याक्षिप्त चित्त से मन्द-मन्द धीरे-धीरे चले ॥२॥
2. That composed ascetic going for gocharagra (seeking alms) in a village, town (or other inhabited area) should walk slowly with tranquil mind. विशेषार्थ : __श्लोक २. गोयरग्ग-गोचराग्र-गो + चर का अर्थ है गाय की तरह चरना। गाय घास, तिनके आदि की प्राप्ति के लिए घूमती है। जहाँ जो जितना मिला उतना खाती चलती है; न स्वाद का ध्यान रखती है, न स्थान की श्रेष्ठता का तथा घास को ऊपर से थोड़ा-थोड़ा चरती है, उसे जड़ से नहीं उखाड़ती, तभी वह गो-चरित घास पुनः हरी-भरी होती रहती है। उसी प्रकार साधु भी उत्तम, मध्यम और निम्न कुलों का विचार न करता हुआ तथा सरस व नीरस आहार का भेद न करता हुआ समभाव से दाता की शक्ति व भक्ति का ध्यान रखकर थोड़ा-थोड़ा आहार प्राप्त करे। यह क्रिया गोचर या गोचरी कहलाती है। गाय सावध आदि दोषों का भेद नहीं कर पाती, किन्तु साधु इन दोषों से रहित आहार लेते हैं-यह स्पष्ट करने के लिए-'अग्र' शब्द जोड़ा गया है जो शुद्ध एषणा का सूचक है। (चित्र संख्या १0/३-४) ___अणुव्विग्गो-अनुद्विग्न-शान्त/निश्चिन्त। जो भिक्षा न मिलने पर तथा तिरस्कार, अपमान, प्रताड़ना आदि परीषहों में शान्त रहे, समता रखे। ___ अव्वक्खित्तेण-अव्याक्षिप्त-व्याकुलतारहित, विषयों में अनासक्त मन से।
ELABORATION:
Goyaragga—This means grazing like a cow. A cow moves about in search of grass or hay. Whatever it gets and wherever it gets it, it consumes what it finds and continues to move. It does not care for the taste of the thing or attributes of a place. It grazes only the top of the grass and does not uproot it as sheep do. That is the reason that the meadow regains its vegetation. In the same way, an ascetic should not care about the high, medium or low caste or status of the donor, or the rich and poor quality of the food. With पंचम अध्ययन : पिण्डैषणा (प्रथम उद्देशक) Fifth Chapter : Pindaishana (Ist Section) ९९ |
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