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ऐसे संयत, विरत, पापकर्म-प्रतिहत तथा पापकर्म-प्रत्याख्यात भिक्षु अथवा भिक्षुणी दिन में या रात में, एकान्त या परिषद में, सोते हुए या जागते हुए यदि KR कीट, पतंग, कुंथु, पिपीलिका (चींटी) उनके हाथ, पैर, बाहु, उरु (जाँघ), उदर, SS
सिर, वस्त्र, पात्र, कंबल, पाँवपोंछ या आसन, रजोहरण, गोच्छग (पात्र पोंछने का वस्त्र), उन्दक (स्थंदिल-पात्र, मूत्र-पात्र), दंडा, पीठ (चौकी), फलक (पाट), - शय्या, संस्तारक (बिछौना) तथा ऐसे अन्य किसी उपकरण पर चढ़ जाये तो यत्नपूर्वक देख-देखकर, पोंछ-पोंछकर एकान्त स्थान में रख देवे किन्तु उन्हें एकत्र करके पीड़ा न पहुँचावे॥२३॥
ABSTINENCE FROM HARMING : THE MOBILE-BODIED BEINGS
23. Such a disciplined, detached (austere), self-absolved (of sins of the past), and abstinent (of sinful activities in future) bhikkhu or bhikkhuni (male or female ascetic), during the day or the night, alone or in a crowd, and while awake or asleep, if he or she finds that some insect, moth, worm or ant has crept on his or her hand, feet, arm, thigh, belly, head, apparel, utensil, blanket, mattress, broom, duster, chamber pot, stick, seat, bench, cot, bed or any other such equipment, then he should carefully look for, collect and place the insects separately at some safe place and avoid causing pain by bunching them together. अयतना का कटु फल
१ : अजयं चरमाणो उ पाणभूयाइं हिंसई।
बंधइ पावयं कम्मं तं से होइ कडुयं फलं॥ अयतनापूर्वक चलने वाला जीवों की हिंसा करता है जिससे पापकर्म का बंध होता है जो उसके लिए कड़वे फल देने वाला होता है॥१॥ THE GRAVE CONSEQUENCES OF CARELESSNESS
1. One who is careless while moving injures living beings.
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चतुर्थ अध्ययन : षड्जीवनिका Fourth Chapter : Shadjeevanika
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