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URAL
Gautam
8. If one moves with care, stands with care, sits with care, lies down with care, eats with care and speaks with care, he avoids bondage of sinful karmas. विशेषार्थ : __श्लोक १-८. जयं चरे-यतनापूर्वक चले-अहिंसा आदि पाँच महाव्रतों का निर्दोष पालन करने के लिए जीवन के प्रत्येक व्यवहार में यतना (सावधानी) की बहुत आवश्यकता है। यतना में दोनों दृष्टियाँ हैं-अहिंसा, सत्य आदि का पालन हो तथा व्यावहारिक दृष्टि से असभ्यता व अप्रियता भी न झलके। शास्त्र में इन सब के लिए नियम व विधि बताई है। जैसे
चलने में यतना-धीरे-धीरे अपने शरीर प्रमाण भूमि को सामने देखते हुए चले। ऊपर-नीचे-तिरछा न देखे, चलते हुए बातें न करे, हँसता हुआ न चले। कीचड़, हिलते पत्थर, ईट आदि पर पैर न रखे तथा सचित्त पथ्वी. जल आदि पर न चले। जोर से हवा. आँधी चल रही हो, कीट-पतंगे उड़ते हुए हों तो न चले, वर्षा आदि में न चले, आदि चलने सम्बन्धी सभी नियमों का पालन करना-गति यतना है। वैसे ही खड़े होने, बैठने, सोने, भोजन करने व बोलने के भी शास्त्र में विधि विधान हैं। __ जैसे भोजन के विषय में कहा है-अशुद्ध अप्रासुक भोजन न लेवे, थोड़ा खाये, अस्वाद वृत्ति से खाये, सबको बाँटकर खाये, गृहस्थ के बर्तन में न खाये, गरिष्ट भोजन न लेवे यह सव भोजन की यतना है। ___ बोलने की यतना-असत्य व मिश्र भाषा न बोले, चुगली न खाये, कर्कश कठोर, सावद्य भाषा न बोले। जिसे सुनकर दूसरा कुपित हो, किसी को अप्रिय लगे तथा जिससे किसी जीव का घात होता हो या जिस भाषा से धर्मसंघ की अवहेलना होती हो वह भाषा न बोले-यह भाषा की यतना है। इन सब व्यवहारों में सावधानी बरतना यतना है। यतनापूर्वक जीवनचर्या चलाने वाला पापकर्म का बंधन नहीं करता चित्र क्रमांक ७ में इसकी विधि दर्शायी गई है।
(विस्तार के लिए दसवेआलियं देखें-पृ. १४९) ELABORATION:
(1-8) Jayam chare-It is necessary to be careful in every activity in order to observe perfectly the five great vows. This care has to be from both angles, that of the observance of great vows as well as of the following of social norms, so that the action does not appear to be repulsive or ill mannered. Scriptures have mentioned ways to ensure this result. In brief they are
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श्री दशवैकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
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