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25. When man sheds all karmas and, becoming absolutely pure, attains Siddha status, he rises into the eternal siddha state located at the edge of the inhabited universe (This is a conceptual area in deep space inhabited by innumerable liberated souls in their formless but eternally pulsating existence). (illustration No. 9)
सुख का रसिक जो श्रमण साता (सुख) के लिए आकुल, अकाल में सोने वाला (मर्यादा विरुद्ध सोने वाला) और हाथ, पैर आदि को असावधानी से धोने वाला (विभूषाप्रिय) होता है उसके लिए सुगति दुर्लभ है ॥ २६ ॥
२६ : सुहसायगस्स समणस्स सायाउलगस्स निगामसाइस्स । उच्छोलणापहोइस्स दुल्लहा सुगइ तारिसगस्स ॥
26. A righteous end evades that shraman who is fond of pleasures, craves for joy, sleeps at the wrong times, washes his limbs carelessly (or is fond of making himself attractive).
जो श्रमण तपोगुण से प्रधान और ऋजुमति (मोक्ष के अनुकूल बुद्धि वाला) है तथा संयमरत है और परीषहों को जीतने वाला है उसके लिए सुगति सुलभ है ॥२७॥
२७ : तवोगुणपहाणस्स उज्जुमइ खंतिसंजमरयस्स । परीसहे जिणंतस्स सुलहा सुगइ तारिसगस्स ॥
27. A righteous end is easy for the shraman who abounds in virtues of austerity, strives for liberation, follows the code of conduct, and does not waver in the face of afflictions.
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जिन्हें तप, संयम, क्षमा और ब्रह्मचर्य प्रिय हैं वे पिछली अवस्था (प्रौढ़ वय) में दीक्षित होने पर भी शीघ्र ही देवगति में चले जाते हैं ॥ २८ ॥
श्री दशवैकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
२८ : पच्छा वि ते पयाया खिष्पं गच्छंति अमरभवणाई । सिं पिओ तवो संजमो य खंती य बंभचेरं च ॥
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