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व्रणशोथ या शोफ
प्रकार चोट या आघात या जीवाणुओं के कारण विनष्ट हुए कोशाओं से ऊतितिक्तीसदृश एक पदार्थ निकलता है और क्षतिग्रस्त स्थल के केशालों का घात कर देता है । दूसरे का नाम मेनि है । इसने व्रणशोथापन ऊतियों से एक स्फाट पदार्थ ( crystalline substance ) तैयार किया है जिसे वह ल्यूकोटैक्सीन ( leucotaxine ) नाम देता है | यह पदार्थ एक प्रकार का पुरुपाचेय ( polypeptide ) है और उसका ऊतितिक्ती से कोई सम्बन्ध नहीं है । वह इस ल्यूकोटैक्सीन को ही harathara का कारण मानता है ।
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ऊतितिक्ती-सदृश पदार्थ ( H. substance ) के कारण या ल्यूकोटैक्सीन के कारण केशालों का घात होकर केशालों का क्षेत्र अत्यधिक विस्तीर्ण हो जाता है । परन्तु धमनिकाओं से उसी अनुपात में रक्त की अधिक मात्रा जा नहीं पाती । जिसके कारण थोड़ा रक्त बहुत बड़े क्षेत्र में जाने से उसके प्रवाह की गति मन्द पड़ जाती है । क्षतिग्रस्त कोशाओं और ऊतियों से निकले हुए पदार्थ के ही कारण यह केशालघात होता है । इसका प्रमाण यह है कि यदि उस अंग के सब नाड़ी सम्बन्ध विच्छिन्न कर दें तथा उस क्षेत्र की सम्पूर्ण वाहनियों को बाँध भी दें तो भी यह घात अवश्य होता है । जो स्पष्टतः यह प्रगट करता है कि यह पदार्थ क्षतिग्रस्त ऊतियों द्वारा उत्पन्न किया गया है और स्थानिक है ।
केशालों के अन्तश्छद्दीय कोशाओं के सूज जाने से केशालों में होकर रक्त के प्रवाह में रुकावट और असुविधा उत्पन्न हो जाती है । जिसके कारण भी रक्त का प्रवाह मन्द होने में सहायता मिलती है ।
harat की प्राचीरों के अत्यधिक अभिस्तीर्ण हो जाने के कारण रक्त का जलीयांश ऊतियों में चला जाता है । रक्त के जलीयांश के निकल जाने के कारण वह गाढ़ा हो जाता है | यह गाढ़ापन उसके प्रहार को और भी मन्द कर देता है ।
केशालों के चारों ओर अतियों में जब जल का अधिक संचय हो जाता है तो जल का दबाव शाल प्राचीरों का अवपात या समवसाद कर देता है। जिसके कारण रक्त को प्रवाहित होने का अवसर भी नहीं रहता और इसी कारण रक्तप्रवाह न केवल मन्द ही अपितु बन्द सा ही हो जाता है ।
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शाल प्राचीरों के अभिस्तरण के कारण बहुत सा रक्त एक ही स्थान पर एकत्र हो जाता है । जिसके कारण वह स्थान अरुण, ताम्र, कृष्ण या अन्य वर्ण का हो जाता है और वहाँ कुछ ऊष्मा भी बढ़ी सी मालूम पड़ती है। तापमान से नापने पर उस स्थल का तापांश सम्पूर्ण शरीर के तापांश के समान ही रहता है। रक्त वा जलीयांश की एक स्थान वा अंग में अधिकता होने के कारण उत्सेध ( swelling ) हो जाता है। थोड़े स्थान में अधिक तरल आने से ऊतियों पर तनाव होता है तथा संज्ञावहा नाड़ियों के अग्र भागपर पीडन अधिक हो जाने के कारण उस स्थान पर शूल भी विशेष हो जाता है और गौरव ( heaviness ) भी बढ़ जाता है । ऐसा होने