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व्रणशोथ या शोफ
५. रक्तज शोफ - पित्तवच्छोणितजोऽतिकृष्णश्च - यह पित्तजशोथ के समान परन्तु वर्ण में अत्यधिक कृष्णता लिए होता है ।
६. आगन्तुशोफ - पित्तरक्तलक्षण आगन्तुलोहितावभासश्व – इसमें पैत्तिक और रक्तजशोफ के लक्षण होते हैं और यह देखने में लोहित (लाल ) वर्ण का होता है. । रक्त, श्याव, अरुणवर्ण वाले अत्युष्ण, तोदभेदादि पीड़ाओं से युक्त शोफ को कश्यप आगन्तुशोफ मानता है ।
८. द्वन्द्वज शोफ-दो दो द्वन्द्वज शोफ बनते हैं । ये ३ ३. पित्तकफज ।
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७. विषज शोफ
"सविषस्ताम्रः कृष्णो वाऽऽशु विसर्पितः । हृल्लासारुचितृण्मूच्र्छाज्वरा रुचिकरो भृशम् ॥ ( का. सं. खि. अ. १७ ) विषज शोफ ताँबे के समान लाल या काले वर्ण का शीघ्र विसर्पणशील होता है साथ में हृल्लास ( nausea ), अरुचि, तृष्णा, मूर्च्छा, ज्वर और अरुचि रहती है । इसी को वाग्भट ने 'मृदुश्चलोऽवलम्बी च शीघ्रो दाहरुजाकरः' भी लिखा है । दोषों के लक्षण जब एक शोफ में मिल जाते हैं तो प्रकार के होते हैं । १. वातपित्तज २. वातकफज
व्रणशोथ या शोफों का वर्गीकरण विभिन्न ग्रन्थकारों ने भिन्न-भिन्न रूप से किया है । चरक ने शोथ को वातिक, पैत्तिक, और लैष्मिक इन ३ भेदों में मानकर फिर उनके निज और आगन्तु दो विभाग किये हैं । निज कारणों से उत्पन्न को शोथ और आगन्तु कारणों से उत्पन्न को व्रणशोथ करके हमने लिया है। सुश्रुत ने ६ प्रकार शोध माने हैं- 'स पविधो वातपित्तकफशोणितसन्निपातागन्तुनिमित्तः' आगन्तु शोफ उनका और चरक का दोनों का विभिन्न आधारों पर स्थिर होने से एक नहीं समझा जा सकता । चरक दोषज शोफों में भी आगन्तुज और निज देखता है पर सुश्रुत दोषशोफ पाँच देकर आगन्तुजशोफ पृथक् दर्शाया है । वाग्भट ने ९ प्रकार के शोफ माने हैं - ३ एक एक दोषज, ३ द्विदोषज, एक सन्निपातज, आठवाँ अभिघातज और नवाँ विषज | उसने निज और आगन्तु दृष्टि से २ श्रेणियों में पुनः बाँटा है । सर्वाङ्ग और एकाङ्गशोफ इस दृष्टि से भी २ भेद उसने कर दिये हैं। उसने आकार दृष्टि से शोफ के ३ और भी भेद किए हैं, जिनमें प्रथम पृथुता की दृष्टि से है, द्वितीय उन्नतता की है और तृतीय ग्रथितता की दृष्टि से है । पृथुता विस्तीर्णता बोधक है, उन्नतता ऊँचाई का ज्ञान कराती है और ग्रथितता उसकी गठन ( texture ) को बतलाती है । कश्यप ने भी शोथ के ६ भेद वातिक, पैत्तिक, लैष्मिक, सान्निपातिक, आगन्तु और विषज माने हैं । माधवकर वातिक, पैत्तिक, लैष्मिक, सान्निपातिक, अभिघातज और विषज ये ६ शोफ माने हैं । व्रणशोथ के वर्णन में वातिक, पैत्तिक, श्लैष्मिक, सान्निपातिक, रक्तज और आगन्तुज ६ नाम दिये हैं- षड्विधः स्यात् पृथक् सर्वरक्तागन्तु निमित्तजः ।
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