________________
समयसारः । नारूपणात् , सकलज्ञेयज्ञायकतादात्म्यस्य निषेधाद्रूपपरिच्छेदपरिणतत्वेपि स्वयं रूपरूपेणापरिणमनाच्चारूपः । तथा पुद्गलद्रव्यादन्यत्वेनाविद्यमानगंधगुणत्वात् पुद्गलद्रव्यगुणेभ्यो भिन्नत्वेन स्वयमगंधगुणत्वात् परमार्थतः पुद्गलद्रव्यस्वामित्वाभावाद् द्रव्येद्रियावष्टंभेनागंधनात् , स्वभावतः क्षायोपशमिकभावाभावाद्भावेंद्रियावलंबेनागंधनात् सकलसाधारणैकसंवेदनपरिणामस्वभावत्वात्केवलगंधवेदनापरिणामापन्नत्वेनागंधनात् सकलज्ञेयज्ञायकतादात्म्यस्य निषेधाद्धपरिच्छेदपरिणतत्वेपि खयं गंधरूपेणापरिणमनाचागंधः । तथा पुद्गलद्रव्यादन्यत्वेनाविद्यमानस्पर्शगुणत्वात् पुद्गलद्रव्यगुणेभ्यो भिन्नत्वेन स्वयमस्पर्शगुणत्वात् परमार्थतः पुद्गलद्रव्यस्वामित्वाभावाद् द्रव्ये द्रियावष्टंभेनास्पर्शनात् स्वभावतः क्षायोपशमिकभावाभावात् भावेंद्रियावलंबनास्पर्शनात्सकलसाधारणैकसंवेदनपरिणामस्वभावत्वात् केवलस्पर्शवेदनापरिणामापन्नत्वेनास्पर्शनात् सकलज्ञेयज्ञायकतादात्म्यस्य निषेधात् स्पर्शपरिच्छेदपरिणतत्वेपि स्वयं स्पर्शस्वरूपेणापरिणमनाचास्पर्शः । तथा पुद्गलद्रव्यादन्यत्वेनाविद्यमानशब्दपर्यायत्वात् पुद्गलद्रव्यपर्यायेभ्यो भिन्नत्वेन खयमशब्दपर्यायत्वात् परमार्थतः दिषसंस्थानरहितं च यं पदार्थ तमेवं गुणविशिष्टं शुद्धजीवमुपादेयमिति हे शिष्य जानीहि । इदमत्र तात्पर्य्य । शुद्धनिश्चयनयेन सर्वपुद्गलद्रव्यसंबंधिवर्णादिगुणशब्दादिपर्यायरहितः सर्वद्रव्येद्रियभावेंद्रियमनोगतरागादिविकल्पाविषयो धर्माधर्माकाशकालद्रव्यशेषजीवांतरभिन्नोनंतज्ञानदर्शटीका-जो जीव है वह निश्चयकर पुद्गल द्रव्यके गुणोंसे भी भिन्न है उसमें रस गुण विद्यमान नहीं इसकारण अरस है । पुद्गल द्रव्यके गुणोंसेभी भिन्न है इसलिये आप रसगुण नहीं होनेसे भी अरस कहा जाता है । परमार्थसे पुद्गल द्रव्यका स्वामीपना भी इसके नहीं है इसलिये द्रव्ये द्रियके आलंबनकर आप रसरूप नहीं परिणमता इस कारण भी अरस है । अपने स्वभावकी दृष्टिसे देखा जाय तो क्षायोपशमिक भावका भी इसके अभाव है इसलिये भावेंद्रियके अवलंबनकर भी इसके रसरूप परिणामका अभाव है इसकारणभी अरस है। ४ । इसका संवेदन परिणाम तो एक ही है वह सकलविषयोंके विशेषोंमें साधारण है उस स्वभावसे केवल एक रसवेदना परिणामकी प्राप्तिरूप ही नहीं है इसकारण भी अरस है। ५ । इसके समस्त ही ज्ञेयोंका ज्ञान होता है परंतु ज्ञेय ज्ञायकके एकरूप होनेका निषेध ही है इसलिये रसके ज्ञानरूप परिणमने पर भी आप रसरूप नहीं परिणमता इस कारणभी अरस है । ६ । इसतरह छह प्रकारकर रसके निषेधसे अरस है । इसीतरह अरूप अगंध अस्पर्श अशब्द इन चारों विशेष. णोंका छह छह हेतुओंकर निषेध किया है सो इसी कथित रीतिसे जानलेना ॥ अब अनिर्दिष्ट संस्थानको कहते हैं । पुद्गलद्रव्यकर रचे हुए संस्थानों ( आकारों) कर कहा नहीं जाता कि ऐसा आकार है । १ । अपने नियत स्वभावकर अनियत संस्थानरूप अनंत शरीरोंमें वर्तता है इसलिये भी आकार कहा नहीं जाता । २ । संस्थान नामकर्मका