Book Title: samaysar
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Jain Granth Uddhar Karyalay

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Page 508
________________ अधिकारः ९ ] समयसारः । ४९५ मकार्ष मनसा च वाचाच कायेन च तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति २९ यदचीकरं मनसा च वाचा च कायेन च तन्मिथ्या मे दुष्कृतं ३० यत्कुर्वंतमप्यन्यं समन्वज्ञासिषं मनसा च वाचाच कायेन च तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति ३१ यदहमकार्ष मनसा च वाचा च कायेन च तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति ३२ यदमचीकरं मनसा च वाचा च तन्मिथ्या दुष्कृतमिति ३३ यत्कुर्वंतमप्यन्यं समन्वज्ञासिषं मनसा च वाचा च तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति ३४ यदहमकार्ष मनसा च कायेन च तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति ३५ यद विवक्षिते सप्तभंगी जाता यथा । तथा कारितेऽपि, तथा अनुमतेऽपि, तथा कृतकारितद्वयेऽपि, तथा कृतानुमतद्वयेऽपि, तथा कारितानुमतद्वयेऽपि, तथा कृतकारितानुमतत्रये चेति प्रत्येकमनेन क्रमेण मन वचन काय हुए || जो पापकर्म अतीतकाल में मैंने किया मनकर वचनकर कायकर वह पापकर्म मेरा मिथ्या हो । यह उनतीसवां भंग है । इसमें कृत एक ही लेकर मन वचन काय तीनों लगाये इसलिये तेरहकी समस्या से तेरहका भंग कहा । २९ । १३ । जो पापकर्म अतीतकालमें मैंने अन्यको प्रेरकर कराया मनवचनकायकर वह पापकर्म मेरा मिथ्या हो । यह तीसवां भंग है । इसमें कारित एक ले मन वचन काय तीनों लगाये इसलिये एका तियासे तेरह की समस्या से तेरहका भंग कहना । ३० । १३ । जो पापकर्म मैंने अतीत कालमें अन्य करते हुएको भला जाना मनकर वचनकर कायकर वह पापकर्म मेरा मिथ्या हो । यह इकतीसवां भंग है । इसमें अनुमोदना एक तीनों लगाये इसलिये तेरह की समस्या से तेरहका भंग है । ३१ । १३ । ऐसे तेरह की समस्याके तीन भंग हुए || जो पापकर्म अतीतकाल में मैंने किया मन वचनकर वह पा पकर्म मेरा मिथ्या हो । यह बत्तीसवां भंग है । इसमें कुत एक ले मनवचन ये दो लगाये इसलिये बारह की समस्यासे बारहका भंग कहा जाता है । ३२ । १२ । जो पापकर्म मैंने अतीतकालमें अन्यको प्रेरकर कराया मनकर वचनकर वह पापकर्म मेरा मिथ्या हो । यह तेतीसवां भंग है । इसमें कारित एक ले मन वचन ये दो लगाये इसलिये एका दुआ ऐसी बारहकी समस्या से बारहका भंग कहा । ३३ । १२ । जो पापकर्म अतीतकालमें मैंने अन्यको करते हुएको भला जाना मनकर वचनकर वह पापकर्म मेरा मिथ्या हो । यह चौतीसवां भंग हुआ । इसमें अनुमोदना एक ले मन वन ये दो लगाये इसलिये एका दुआ ऐसा बारहका भंग कहना । ३४ । १२ । जो पापकर्म अतीतकाल में मैंने किया मनकर कायकर वह पापकर्म मेरा मिथ्या हो । यह पैंतीसवां भंग है । इसमें कृत एक ले मन और काय ये दो लगाये इसलिये बारहकी समस्यासे बारहका भंग कहना । ३५ । १२ । जो पापकर्म अतीतकाल में अन्यको प्रेर

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