Book Title: samaysar
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Jain Granth Uddhar Karyalay

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Page 513
________________ ५०० रायचन्द्रजैमशास्त्रमालायाम् । [ सर्वविशुद्धज्ञान - न कारयामि न कुर्वतमप्यन्यं समनुजानामि वाचा चेति ६ न करोमि न कारयामि न कुर्वतमप्यन्यं समनुजानामि कायेन चेति ७ न करोमि न कारयामि मनसा च वाचा च कायेन चेति ८ न करोमि न कुर्वतमप्यन्यं समनुजानामि मनसा च वाचा च कायेन चेति ९ न कारयामि न कुर्वतमप्यन्यं समनुजानामि मनसा च वाचा च कायेन चेति १० न करोमि न कारयामि मनसा च वाचा चेति ११ न करोमि न कुर्वतमप्यन्यं समनुजानामि मनसा च वाचा चेति १२ न कारयामि न कुर्वतमप्यन्यं समनुजानामि करोमि यदहं कारयामि यदहं कुर्वतमप्यन्य प्राणिनं समनुजानामि, केन ? मनसा वाचेति तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति-एकैकापनयनेन पंचसंयोगेन भंगत्रयं भवति । एवं पूर्वोक्तप्रकारेण एकोनपं. पर एक वचन लगा इसलिये इकतीसकी समस्याका भंग कहना । ६ । ३१ । वर्तमान कर्मको मैं करता नहीं, अन्यको प्रेरकर कराता नहीं, अन्य करते हुएको भला नहीं जा. नता कायकर। यह सातवां भंग है । इसमें कृतकारित अनुमोदना इन तीनोंपर एक काय लगाया इसलिये इकतीसकी समस्याका भंग हुआ । ७ । ३१ । ऐसे इकतीसकी समस्याके तीन भंग हुए ॥ वर्तमान कर्मको मैं करता नहीं हूं अन्यको प्रेरकर कराता नहीं हूं मनकर वचनकर कायकर । यह आठवां भंग है । इसमें कृतकारित इन दोनोंपर मन वचनकाय तीनों लगाये इसलिये तेईसकी समस्याका भंग कहना । ८ । २३ । वर्तमान कर्मको मैं करता नहीं हूं अन्य करते हुएको भला नहीं जानता मन कर वचनकर कायकर । यह नौवां भंग है । इसमें कृत अनुमोदना इन दोनों पर मन वचन काय तीनों लगाये इसलिये तेईसकी समस्याका भंग हुआ। ९ । २३ । वर्तमान कर्मको मैं अन्यको प्रेरकर नहीं कराता अन्य करते हुएको भला नहीं जानता मनकर वचनकर कायकर । यह दसवां भंग है । इसमें कारित अनुमोदना इन दोनोंपर मनवचन काय तीनों लगाये इसलिये तेईसकी समस्याका भंग हुआ। १० । २३ । ऐसे तेईसकी सम. स्याके तीन भंग हुए ॥ वर्तमान कर्मको मैं करता नहीं, अन्यको प्रेरकर कराता नहीं मन कर वचनकर । यह ग्यारवां भंग है । इसमें कृतकारित इन दोनों पर मन वचन ये दो लगाये इसलिये बाईसकी समस्याका भंग हुआ । ११ । २२ । वर्तमान कर्मको मैं करता नहीं अन्य करते हुएको भला नहीं जानता मनकर वचनकर । यह बारवां भंग है । इसमें कृत अनुमोदना इन दोनोंपर मनवचन ये दो लगाये इसलिये बाईसकी स. मस्याका भंग हुआ । १२ । २२ । वर्तमान कर्मको मैं अन्यको प्रेरकर नहीं कराता अन्य करते हुएको भला नहीं जानता मनकर वचनकर । ऐसा तेरवां भंग है । इसमें कारित अनुमोदना इन दोनोंपर मन वचन ये दो लगाये इसलिये बाईसकी समस्याका भंग हुआ

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