Book Title: samaysar
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Jain Granth Uddhar Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 561
________________ ५४८ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । [ परिशिष्टम् प्रतिपद्यात्मानं नाशयति तदा परकालेनासत्त्वं द्योतन्ननेकांत एव नाशयितुं न ददाति १० । यदा ज्ञायमानपरभावपरिणमनात् ज्ञायकभावं परभावत्वेन प्रतिपद्य नाशमुपैति तदा स्वभावेन सत्त्वं द्योतयन् अनेकांत एव तमुज्जीवयति ११ यदा तु सर्वे भावा अहमेवेति परभावं ज्ञायकभावत्वेन प्रतिपाद्यात्मानं नाशयति तदा परभावं द्योतयन्ननेकांत एव नाशयितुं न ददाति १२ यदाऽनित्यज्ञानविशेषैः खंडितनित्यज्ञानसामान्यो नाशमुपैति तदा ज्ञानसामान्यरूपेण नित्यत्वं द्योतयन्ननेकांत एव नाशयितुं न ददाति १३ यदा तु नित्यज्ञान सामान्योपादानायानित्यज्ञानविशेषत्यागेनात्मानं नाशयति तदा ज्ञानविशेषरूपेणानित्यत्वं द्योतयन्ननेकांत एव तं नाशयितुं न ददाति १४ । भवंति चात्र श्लोकाः-"बाह्याथैः परिपीतमुज्झितनिजप्रव्यक्तिरिक्तीभवद्विश्रांतं पररूप एव परितो ज्ञानं पशोः सीदति । यत्तत्तत्तदिह स्वरूपत इति स्याद्वादिनस्तत्पुनरान्मनघनस्वभावभरतः पूर्णः समुन्मजति ॥ २४८ ॥ विश्वं ज्ञानमिति प्रतयं सकलं दृष्ट्वा खतत्त्वाशया भूत्वा विश्वमयः सद्रूपः । परद्रव्यक्षेत्रकालभावचतुष्टयेनासद्रूपः । द्रव्यार्थिकनयेन नित्यः । पर्यायार्थिकनयेनाअर्थके आलंबनके कालमें ही ज्ञानके सत्त्वको ग्रहणकर एकांती आत्माका नाश करता है उस समय परके कालकर असत्त्वको प्रगट करता हुआ अनेकांत ही नाश नहीं होने देता । १० । जिस समय जाननेमें आता जो परभाव उसके परिणमनके आकार दीखता जो ज्ञायकभाव उसको परभावसे ग्रहण कर एकांती ज्ञान भावको नाशको प्राप्त करता है उस समय स्वभावकर ज्ञानके सत्त्वको प्रगट करता अनेकांत ही ज्ञानको जिवाता है नाश नहीं होने देता । ११ । जिससमय एकांती ऐसा मानता है जो सब भाव हैं वे मैं हूं' ऐसें परभावको ज्ञायकपनेसे अंगीकारकर आत्माका नाश करता है उससमय पर भावोंकर ज्ञानके असत्त्वको प्रगट करता हुआ अनेकांत ही आत्माका नाश नहीं होने देता । १२ । जिस समय अनित्य ज्ञानके विशेषोंकर खंडित हुआ जो नित्य ज्ञानसामान्य वह नाशको प्राप्त होता है ऐसा एकांत स्थापन करता है उस समय ज्ञानके सामान्यरूपकर नित्यपनेको प्रगट करता अनेकांत ही नाश नहीं करने देता । १३ । जिस समय नित्य जो ज्ञानसामान्य उसके ग्रहण करनेके लिये अनित्य जो ज्ञानके विशेष उनके त्यागकर एकांती आत्माको नाशको प्राप्त करता है उससमय ज्ञानके विशेषरूपकर अनित्यपनेको प्रगट करता अनेकांत ही उस आत्माको जिवाता है नाश नहीं होने देता । १४ । इसतरह चौदह भंगोंकर ज्ञानमात्र आत्माको एकांतकर तो आत्माका अभाव होना और अनेकांतकर आत्माका ठहरना दिखलाया। वहां तत् अतत्, एक अनेक, नित्य अनित्य इसतरह छह भंग तो ये हुए और सत्त्व असत्त्वके द्रव्य क्षेत्र काल भावकर आठ भंग किये । इसप्रकार चौदह भंग जानने ॥ अब इनके कलशरूप १४ काव्य कहते हैं उनमेंसे २४८ वां यह

Loading...

Page Navigation
1 ... 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590