Book Title: samaysar
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Jain Granth Uddhar Karyalay

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Page 559
________________ ५४६ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । [परिशिष्टम् न खल्वनेकांतमंतरेण ज्ञानमात्रमात्मवस्त्वेव प्रसिद्ध्यति । तथाहि-इह हि स्वभावत एव बहुभावनिर्भरविश्वे सर्वभावानां स्वभावेनाद्वैतेऽपि द्वैतस्य निषेद्धुमशक्यत्वात् समस्तमेव वस्तु स्वपररूपप्रवृत्तिव्यावृत्तिभ्यामुभयभावाध्यासितमेव । तत्र यदायं ज्ञानमात्रो भावः शेषभावैः सह स्वरसभरप्रवृत्तज्ञातृज्ञेयसंबंधतयाऽनादिज्ञेयपंरिणमनात् ज्ञानत्वं पररूपेण प्रतिपद्याज्ञानी भूत्वा तमुपैति, तदा स्वरूपेण तत्त्वं द्योतयित्वा ज्ञातृत्वेन परिणमनाज्ज्ञानी कुर्वन्ननेकांत एव तमुद्गमयति १ । यदा तु सर्व वै खल्विदमात्मेति अज्ञानत्वं ज्ञानवरूपेण प्रतिपद्य विश्वोपादानेनात्मानं नाशयति तदा पररूपेणातत्त्वं द्योतयित्वा विश्वाद्भिन्नं ज्ञानं दर्शयन् अनेकांत एव नाशयितुं न ददाति २। यदानेकज्ञेयाकारैः खंडितसकलैकज्ञानाकारो नाशमुपैति तदा द्रव्येणैकत्वं द्योतयन् अनेकांत एव तमुजीवयतीति ३ । यदा त्वेकज्ञानाकारोपादानायानेकज्ञेयाकारत्यागेनात्मानं नाशयति तदा ज्ञानमात्रो योऽसौ भावो जीवपदार्थः शुद्धात्मा स तदतद्रूप एकानेकात्मकः सदसदात्मको निउसके साधनपनेकर अनेकांतको किसलिये उपदेश करते हैं ? । उसका समाधान-जो अज्ञानी जन हैं उनके ज्ञानमात्र आत्मवस्तुके प्रसिद्ध करनेके लिये कहते हैं । निश्चयकर अनेकांतके विना ज्ञानमात्र आत्मवस्तु ही प्रसिद्ध नहीं होती। यही कहते हैं-स्वभावसे ही बहुत भावोंकर भरे हुए इस लोकमें सब भावोंके अपने अपने स्वभावकर अद्वैतपना है तौभी द्वैतपनेके निषेध करनेका असमर्थपना है । इसलिये सभी वस्तु स्वरूपमें प्रवृत्ति और पररूपसे व्यावृत्ति इन दोनों रीतियोंसे दोनों भावोंकर युक्त है यह नियम है । यही ज्ञानमात्र भावमें लगाना । वहां ज्ञानभाव है वह अन्य (बाकीके) ज्ञेयभावोंकर सहित अपने निज ज्ञानरसके भरकर प्रवर्ता जो ज्ञाता ज्ञेयका संबंध उसपनेकर अनादिसे ही ज्ञेयाकार परिणमता ही दीखता है । इसलिये जो अज्ञानीजन हैं वे ज्ञानतत्त्वको ज्ञेयरूप अंगीकारकर अज्ञानी हुए आप.नाशको प्राप्त होते हैं उससमय यह अनेकांत है वह अपने ज्ञानस्वरूपकर ज्ञेयसे भिन्न ज्ञानतत्त्वको प्रगट कर इस आत्माको ज्ञातापनेकर परिणमनसे ज्ञानी करता हुआ इस आत्माको उदयरूप करता है नाश नहीं होने देता। १। अज्ञानी जन जिस समय ऐसा मानते हैं कि यह सब जगत् निश्चयकर एक आत्मा है इसतरह अज्ञानत. त्वको अपने ज्ञानस्वरूपसे अंगीकार कर सब जगत्को अपना मान ग्रहण कर अपने भिन्न आत्माका नाश करते हैं उस समय परमावस्वरूपकर अतत् अर्थात् सब जगत् एक ही आत्मा नहीं है ऐसें भिन्न आत्मस्वरूपपना प्रगट कर यह अनेकांत सब जगतसे भिन्न ज्ञानको दिखाता हुआ आत्माका नाश नहीं करने देता । २ । जिस समय अनेक ज्ञेयोके आकारोंकर खंड खंडरूप किया जो एक ज्ञानका आकार उसको देख एकांत वादी ज्ञान तत्त्वको नाशको प्राप्त करते हैं उस समय यह अनेकांत ज्ञानतत्त्वके द्रव्यकर एकपनेको प्रगट करता हुआ उसको जीवित करता है नाश नहीं होने देता। ३ । जिस

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