Book Title: samaysar
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Jain Granth Uddhar Karyalay

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Page 569
________________ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् [ परिशिष्टम् अनंतधर्मज्ञानं यद्यावलक्ष्यते तत्तावत्समस्तमेवैकः खल्वात्मा एतदर्थमेवात्रास्य ज्ञानमात्रतया व्यपदेशः । ननु क्रमाक्रमप्रवृत्तानंतधर्ममयस्यात्मनः कथं ज्ञानमात्रत्वं परस्परव्यतिरिक्तानंतधर्मसमुदायपरिणतैकज्ञप्तिमात्रभावरूपेण स्वयमेव भवनात् । अत एवास्य ज्ञानमात्रैकभावांतःपातिन्योऽनंताः शक्तयः उत्प्लवंते । आत्मद्रव्यहेतुभूतचैतन्यमात्रभावधारणलक्षणा जीवत्वशक्तिः । अजडत्वात्मिका चितिशक्तिः । अनाकारोपयोगमयी दृष्टिशक्तिः । साकारोपयोगमयी ज्ञानशक्तिः । अनाकुलत्वलक्षणा सुखशक्तिः । स्वरूपनिर्वर्तनसामर्थ्यरूपा वीर्यशक्तिः । अखंडितप्रतापस्वातंत्र्यशालित्वलक्षणा प्रभुत्वशक्तिः । सर्वभावव्यापकैसारभूतं वस्तु राज्ञे ददाति तत्प्राभृतं भण्यते । तथा परमात्माराधकपुरुषस्य निर्दोषिपरमात्मलित निश्चल लगाई दृष्टिकर क्रमरूप और अक्रमरूप युगपद्रूप प्रवर्तता जो उस ज्ञानसे अविनाभूत अनंतधर्मका समूह जितना कुछ देखा जाता है उतना कुछ समस्त ही एक निश्चयकर आत्मा है । इसी प्रयोजनके लिये इस अध्यात्म प्रकरणमें इस आत्माका ज्ञानमात्रपनेसे नाम कहा है । फिर पूछते हैं कि क्रमरूप व अक्रमरूप अनंत धर्म जिसमें प्रवर्तते हैं ऐसे आत्माके ज्ञानमात्रपना कैसा है ? उसका समाधान-परस्पर जुदे जुदे स्वरूपको धारनेवाले अनंत धोका समुदायरूप परिणत हुई जो एक ज्ञान क्रिया उस. मात्र भावरूपकर अपने आप (स्वयमेव ) होनेसे आत्माके ज्ञानमात्रपना है । आत्माके जितने धर्म हैं वे सभी ज्ञानके परिणमनस्वरूप हैं। यद्यपि उनमें लक्षण भेदसे भेद है तौ भी प्रदेशभेद नहीं है इसलिये एक असाधारण ज्ञानके कहनेसे सभी इसमें आगये । इसीसे इस आत्माका ज्ञानमात्र जो एक भाव उसके अंतःपातिनी ( इसीमें आकर पड़नेवाली ) अनंत शक्तियां उदय होती ( उघड़ती ) हैं। उनमेंसे कितनी एक शक्तियों को कहते हैं । उनका टीकामें संस्कृतपाठ है उनकी वचनिका लिखते हैं-आत्म इत्यादि । अर्थ-प्रथम तो जीवत्वनामा शक्ति है । वह कैसी है ? आत्मद्रव्यको कारणभूत जो चैतन्यमात्रभाव वही हुआ भावप्राण उसका धारणा जिसका लक्षण है ऐसी है। अजड इत्यादि । अर्थ-यह दूसरी चितिशक्ति है । वह कैसी है ? जिसका स्वरूप जड़ रहित चेतना है ऐसी है। अनाका इत्यादि । अर्थ-यह तीसरी दर्शनक्रियारूप शक्ति है । कैसी है ? जिसमें ज्ञेयरूप आकारका विशेष नहीं ऐसे दर्शनोपयोगमयी (सत्तामात्र पदार्थसे उपयुक्त होने स्वरूप) है । साकारो इत्यादि । अर्थयह चौथी ज्ञानशक्ति है । वह कैसी है ? ज्ञेयपदार्थके आकाररूप विशेषसे उपयुक्त होनेवाले ज्ञानमयी है । अना इत्यादि । अर्थ-यह पांचमी सुखशक्ति है । कैसी है ? आकुलतासे रहितपना जिसका लक्षण है ऐसी है। स्वरूप इत्यादि। अर्थ-यह छठी वीयशक्ति है । कैसी है ? अपने आत्मस्वरूपकी रचनाकी सामर्थ्यरूप है । अखंडित इत्यादि । अर्थ-यह सातमी प्रभुत्वशक्ति है । कैसी है ? जिसका प्रताप किसीकर खंडित न

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