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परिशिष्टम् ] समयसारः।
५५७ करूपा विभुत्वशक्तिः । विश्वविश्वसामान्यभावपरिणामात्मदर्शनमयी सर्वदर्शित्वशक्तिः । विश्वविश्वविशेषभावपरिणामात्मज्ञानमयी सर्वज्ञत्वशक्तिः । नीरूपात्मप्रदेशप्रकाशमानलोकाकारमेचकोपयोगलक्षणा स्वच्छत्वशक्तिः । स्वयंप्रकाशमानविशदखसंवित्तिमयी प्रकाशशक्तिः । क्षेत्रकालानवच्छिन्नचिद्विलासात्मिकाऽसंकुचितविकाशत्वशक्तिः । अन्याक्रियमाणाऽन्याकारकैकद्रव्यात्मिका अकार्याकारणशक्तिः । परात्मनिमित्त कज्ञेयज्ञानाकारग्राहणग्रहणखभावरूपा परिणम्यपरिणामकत्वशक्तिः । अन्यूनातिरिक्तखरूपनियतरूपा त्यागोपादानशून्यत्वशक्तिः । पदस्थानपतितवृद्धिहानिपरिणतस्वरूपप्रतिष्ठत्वकारणविशिष्टगुणात्मिकाराजदर्शनार्थमिदमपि शास्त्रं प्राभृतं । कस्मात् ? सारभूतत्वात् इति प्राभृतशब्दस्यार्थः । रागादिपरद्रव्यनिरालंबनत्वेन निजशुद्धात्मनि विशुद्धाधारभूतेऽनुष्ठानमध्यात्मं । इदं प्राभृतशास्त्रं ज्ञात्वा किया जाय ऐसा जो स्वाधीनपना उसकर शोभायमानपना जिसका लक्षण है ऐसी है। सर्व इत्यादि । अर्थ-यह आठवीं विभुत्वनामा शक्ति है । कैसी है ? सब भावों में व्यापक जो एक भाव उसरूप है, जिसका ज्ञान एक भाव सब भावोंमें व्यापता है। विश्व इत्यादि । अर्थ-यह नौमी सर्वदर्शित्व नामा शक्ति है । कैसी है ? समस्त पदार्थोंका समूहरूप जो लोकालोक उसका सामान्य भाव सत्तामात्र उसके देखनेरूप जिसका स्वरूप परिणया है ऐसे देखनेमयी है। विश्व इत्यादि । अर्थ-समस्त पदार्थोंका समूहरूप लोकालोक उनके समस्त जो आकार सहित भाव उनके जाननेरूप जिसका खरूप परिणत हुआ है ऐसी ज्ञानमयी दशमी सर्वज्ञत्व नामा शक्ति है । नीरूपा इत्यादि । अर्थअमूर्तीक आत्माका प्रदेशोंमें प्रकाशमान जो लोकालोकके आकारसे अनेक आकाररूप दीखता उपयोग वह जिसका लक्षण है ऐसी स्वच्छत्व नामा ग्यारमी शक्ति है । जैसी दर्पणकी स्वच्छता है कि जिसमें घटपटादि प्रकाशें ऐसी स्वच्छता है। स्वय इत्यादि । अर्थ-अपने आप प्रकाशमान स्पष्ट अपने अनुभवमयी प्रकाश नामा शक्ति बारमी है। क्षेत्र इत्यादि। अर्थ-क्षेत्र कालकर अमर्यादरूप जो चैतन्यका विलास उस स्वरूप असंकुचित विकासत्व नामा तेरमी शक्ति है। अन्या इत्यादि । अर्थ-अन्यकर न करने योग्य और अन्यका कारण नहीं ऐसा एकद्रव्य उस स्वरूप अकार्यकारणत्वनामा चौदमी शक्ति है । परात्म इत्यादि । अर्थ-पर और आप जिनका निमित्त है ऐसे शेयाकार ज्ञानाकार उनका ग्रहण करना व ग्रहण कराना ऐसा खभाव जिसका रूप है ऐसी परिणम्य परिणात्मक नामा पंद्रहवीं शक्ति है, यह शक्ति ज्ञेयाकार और ज्ञानाकार आप ही परिणमती है । अन्यूना इत्यादि । अर्थ-न घटे न पढे ऐसे स्वरूप में नियमरूप जैसेका तैसा रहना उसरूप त्यागोपादान शून्यत्व नामा सोलवी शक्ति है । षट् इत्यादि । अर्थ-पद-स्थान पतित वृद्धि हानिरूप परिणत हुआ जो वस्तुके नि