Book Title: samaysar
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Jain Granth Uddhar Karyalay
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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । - [वक्तवं किंचिन्न किंचित्खलु ॥ १॥ वशक्तिसंसूचितवस्तुतत्त्वैर्व्याख्या कृतेयं समयस्य शब्दैः । खरूपगुप्तस्य न किंचिदस्ति कर्तव्यमेवामृतचंद्रसूरेः ॥२॥ ___ इतिश्री अमृतचंद्राचार्यकृता समयसारव्याख्या आत्मख्यातिः समाप्ता ॥ मिदं स्वरूपरसिकैः निर्वर्णितं प्राभृतं । शश्वद्रूपमलं विचित्रसकलं ज्ञानात्मकं केवलं । संप्राप्याग्रपदेऽपि मुक्तिललनारक्तः सदा वर्तते ।। इति श्रीकुंदकुंददेवाचार्यविरचितसमयसारप्राभृताभिधानग्रंथस्य संबंधिनी श्रीजयसेनाचार्यकृता दशाधिकारैरेकोनचत्वारिंशदधिक
गाथाशतचतुष्टयेन तात्पर्यवृत्तिः समाप्ता ॥ मंगल श्री अरहंत घातिया कर्म निवारे, मंगल सिद्ध महत कर्म आठों परजारे । आचारज उवज्झाय मुनी मंगलमयसारे, दीक्षाशिक्षा देय भव्यजीवनिकू तारे ।
अठवीस मूलगुण धार जे सर्वसाधु अनगार हैं,
मैं नमूं पंचगुरुचरणकू मंगल हेतु करार हैं ॥ १॥ जैपुर नगरमांहि तेरापंथ शैली बडी बड़े बड़े गुनी जहां पढ़ें ग्रंथ सार हैं, जयचंद्र नाम मैं हूं तिनिमें अभ्यास किछू कियो बुद्धिसारू धर्मरागते विचारे हैं । समयसार ग्रंथ ताकी देशके वचनरूप भाषाकरी पढो सुनूं करो निरधार है, आपा परभेद जानि हेय त्यागि उपादेय गहो शुद्ध आतमकू यह बात सार है ॥२॥ दोहा-संवत्सर विक्रम तणूं अष्टादश शत और ।
चौसठि कातिकवदि दशै पूरणग्रंथ सुठौर ॥ ३॥ इसप्रकार श्रीमत्कुंदकुंदाचार्यकृत समयप्राभृत नामा प्राकृतगाथाबद्ध ग्रंथकी अमृतचंद्राचार्यकृत आत्मख्याति नामा संस्कृत टीकाके अनुसार पं० जयचंद्र कृत यह संक्षेप भावार्थ मात्र भाषाटीका संपूर्ण हुई ॥
DOCOCIENCE
१ समाप्तोऽयं समयसारः।

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