Book Title: samaysar
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Jain Granth Uddhar Karyalay

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Page 560
________________ परिशिष्टम् ] समयसारः । पर्यायैरनेकत्वं द्योतयन् अनेकांत एव नाशयितुं न ददाति ४ । यदा ज्ञायमानपरद्रव्यपरिणमनाद् ज्ञातृद्रव्यं परद्रव्यत्वेन प्रतिपद्य नाशमुपैति तदा स्वद्रव्येण सत्त्वं द्योतयन् अनेकांत एव तमुञ्जीवयति ५ । यदा तु सर्वद्रव्याणि अहमेवेति परद्रव्यं ज्ञातृद्रव्यत्वेन प्रतिपाद्यात्मानं नाशयति तदा परद्रव्येणासत्त्वं द्योतयन् अनेकांत एव नाशयितुं न ददाति ६ । यदा परक्षेत्रगत ज्ञेयार्थपरिणमनात् परक्षेत्रेण ज्ञानं सत् प्रतिपद्य नाशमुपैति तदा स्वक्षेत्रेणास्तित्वं द्योतयन्ननेकांत एव तमुज्जीवयति ७ । यदा तु स्वक्षेत्रे भवनाय परक्षेत्रे ज्ञेयाकारत्यागेन ज्ञानं तुच्छीकुर्वन्नात्मानं नाशयति तदा स्वक्षेत्र एव ज्ञानस्य परक्षेप्रगत ज्ञेयाकारपरिणमनस्वभावत्वात्परक्षेत्रेण नास्तित्वं द्योतयन् अनेकांत एव नाशयितुं न ददाति |८| यदा पूर्वालंबितार्थविनाशकाले ज्ञानस्यासत्त्वं प्रतिपद्य नाशमुपैति यदा स्वकालेन सत्त्वं द्योतयन्ननेकांत एव तमुज्जीवयति । ९ । यदा त्वर्थालम्बनकाल एवं ज्ञानस्य सवं त्यानित्यादिस्वभावात्मको भवतीति कथयति । तथाहि - ज्ञानरूपेण तद्रूपो भवति । ज्ञेयरूपेणातो भवति । द्रव्यार्थिकनयेनैकः । पर्यायार्थिकनयेनानेकः । स्वद्रव्यक्षेत्र कालभाव चतुष्ट ५४७ समय एकांती ज्ञानका एक आकार ग्रहण करनेके लिये अनेक ज्ञेयोंके आकार ज्ञानमें आते हैं उनका त्यागकर ज्ञानस्वरूप आत्माका नाश करता है उससमय यह अनेकांत ज्ञानके पर्यायोंकर अनेकपनेको प्रगट करता हुआ आत्माका नाश नहीं करने देता । ४ । जिस समय एकांती ज्ञानमें आये जो परद्रव्य उनके परिणमनसे ज्ञाता द्रव्यको परद्रव्यपनेसे अंगीकार कर आत्माका नाश करता उस समय अपने स्वद्रव्यकर अपने सत्वको प्रगट करता हुआ अनेकांत ही आत्माको जीवित रखता है नाश नहीं होने देता । ५ । जिस समय एकांती, सब द्रव्य हैं वे मैं ही हूं इसतरह परद्रव्योंको ज्ञाता द्रव्यकर अंगीकार करता आत्माका नाश करता है उस समय पर द्रव्यरूप आत्मा नहीं है ऐसें परद्रव्य कर आत्माके असत्त्त्रको प्रगट करता हुआ अनेकांत ही नाश नहीं करने देता । ६ । पर क्षेत्र में प्राप्त ज्ञेय पदार्थोंके आकार सरीखा परिणमनेसे परक्षेत्रकर ही ज्ञानको सद्रप अंगीकार कर एकांती नाशको प्राप्त करता है उस समय अपने क्षेत्रकर अस्तित्वको प्रगट करता हुआ अनेकांत ही जिवाता है नाश नहीं होने देता । ७ । अपने क्षेत्रमें होनेके लिये पर क्षेत्रमें प्राप्त जो ज्ञेय उनके आकार ज्ञानका होना उसका त्यागकर ज्ञानको ज्ञेयाकार रहित तुच्छ करता हुआ एकांती आत्माका नाश करता है उस समय अनेकांत, ज्ञानका अपने क्षेत्रमेंही परक्षेत्र में प्राप्त ज्ञेयोंके आकाररूप परिणमनेका स्वभावपना है, ऐसें परक्षेत्रकर नास्तिपनेको प्रगट करता हुआ नाश नहीं करने देता | ८ | जिस समय पूर्व आलंबन किये ज्ञेय पदार्थोंके विनाशके समय ज्ञानके असत्त्वको अंगीकार कर एकांती ज्ञानको नाशको प्राप्त करता है उस समय अनेकांत ही अपने ज्ञानके ही कालकर अज्ञानके सत्वको प्रगट करता ज्ञानको जिवाता है नाश नहीं होने देता । ९ । जिस समय

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