Book Title: samaysar
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Jain Granth Uddhar Karyalay

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Page 523
________________ ५१० रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् [ सर्वविशुद्धज्ञान कारयिष्यामि वाचा चेति ४५ न कुर्वतमप्यन्यं समनुज्ञास्यामि वाचा चेति ४६ न करिष्यामि कायेन चेति ४७ न कारयिष्यामि कायेन चेति ४८ न कुर्वंतमप्यन्यं समनुज्ञास्यामि कायेन चेति ४९ " प्रत्याख्याय भविष्यत्कर्म समस्तं निरस्तसंमोहः । आत्मनि चैतन्यात्मनि निष्कर्मणि नित्यमात्मना वर्ते” ॥ २२८ ॥ इति प्रत्याख्यानकल्पः मितोत्तरप्रकृतीनां कर्मफलसंन्यासभावना नाटयितव्या, कर्तव्येत्यर्थः । किंच जगत्रयकालत्र कर्मको मैं नहीं करूंगा मनकर । ऐसा इकतालीसवां भंग है । इसमें एक कृतपर एक मन लगाया इसलिये ग्यारहकी समस्या हुई । ४१ । ११ । आगामी कर्मको मैं अन्यको प्रेरकर नहीं कराऊंगा मनकर । ऐसा ब्यालीसवां भंग है। इसमें एक कारितपर एक मन लगाया इसलिये ग्यारह की समस्या हुई । ४२ । ११ । आगामी कर्मको मैं अन्यके करनेको भला नहीं जानूंगा मनकर | ऐसा तेतालीसवां भंग है । इसमें एक अनुमोदनापर एक मन लगाया इसलिये ग्यारहकी समस्या हुई । ४३ । ११ । आगामी कर्मको मैं नहीं करूंगा वचनकर | ऐसा चवालीसवां भंग है । इसमें एक कृतपर एक वचन लगाया इसलिये ग्यारह की समस्या हुई । ४४ । ११ । आगामी कर्मको मैं अन्यको प्रेरकर नहीं कराऊंगा बचनकर । ऐसा पैंतालीसवां भंग है । इसमें एक कारितपर एक वचन लगाया इसलिये ग्यारह की समस्या हुई । ४५ । ११ । आगामी कर्मको मैं अन्यके करनेको भला नहीं जानूंगा वचनकर | ऐसा छ्यालीसवां भंग है । इसमें एक अनुमोदनापर एक वचन लगाया इसलिये ग्यारह की समस्या हुई । ४६ । ११ । आगामी कर्मको मैं नहीं करूंगा कायकर ऐसा सैंतालीसवां भंग है । इसमें एक कृतपर एक काय लगाया इसलिये ग्यारहकी समस्या हुई । ४७ । ११ । आगामी कर्मको मैं अन्यको प्रेरकर नहीं कराऊंगा कायकर | ऐसा अडतालीसवां भंग है । इसमें कारितपर एक काय लगाया इसलिये ग्यारह की समस्या हुई । ४८ । ११ । आगामी कर्मको अन्य के करनेको भला नहीं जानूंगा कायकर | ऐसा उनचासवां भंग है । इसमें एक अनुमोदन पर एक काय लगाया इसलिये ग्यारह की समस्या हुई । ४९ । ११ । ऐसे ग्यारह की समस्या के नौ भंग हुए । इसतरह उनचास भंग प्रत्याख्यान के हुए। उनमें तेतीसकी समस्याका एक ९ बत्तीस के तीन ३ इकतीसके तीन ३ तेईसके तीन ३ बाईसके नौ ९ इक्कीसके ९ तेरह के ३ बारहके ९ ग्यारह के ९ । इस प्रकार सब मिलकर उनचास हुए । अब इस अर्थका कलशरूप २२८ वां काव्य कहते हैं - प्रत्याख्याय इत्यादि । अर्थ- - प्रत्याख्यान करनेवाला ज्ञानी कहता है कि आगामी सब कर्मों को मैं प्रत्याख्यान ( त्याग ) कर नष्ट मोहवाला हुआ कर्मसे रहित चैतन्यस्वरूप आत्मामें आपकर ही वर्तता हूं ॥ भावार्थ -- निश्चय चारित्र में प्रत्याख्यानका विधान ऐसा है कि समस्त आगामी कर्मों से

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