Book Title: samaysar
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Jain Granth Uddhar Karyalay

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Page 550
________________ अधिकारः ९] समयसारः। ५३७ न पश्यति । "व्यवहारविमूढदृष्टयः परमार्थं कलयंति नो जनाः । तुषबोधविमुग्धबुद्धयः कलयंतीह तुषं न तंडुलं ॥ २४२ ॥ द्रव्यलिंगममकारमीलितैः दृश्यते समयसार एव न । द्रव्यलिंगमिह यत्किलान्यतो ज्ञानमेकमिदमेव हि स्वतः ॥ २४३॥" ४१३ ॥ ववहारिओ पुण णओ दोषिणवि लिंगाणि भणइ मोक्खपहे। णिच्छयणओ ण इच्छइ मोक्खपहे सव्वलिंगाणि ॥४१४ ॥ व्यावहारिकः पुनर्नयो द्वे अपि लिंगे भणति मोक्षपथे । निश्चयनयो नेच्छति मोक्षपथे सर्वलिंगानि ॥ ४१४ ॥ यः खलु श्रमणश्रमणोपासकभेदेन द्विविधं द्रव्यलिंगं भवति मोक्षमार्ग इति प्ररूपणप्रकारः स केवलं व्यवहार एव न परमार्थस्तस्य स्वयमशुद्धद्रव्यानुभवनात्मकत्वे सति भाशुभसंकल्पविकल्परहितः शून्यः चिदानंदैकस्वभावशुद्धात्मतत्त्वसम्यश्रद्धानज्ञानानुचरणरूपाभेदरत्नत्रयात्मनिर्विकल्पसमाधिसंजातवीतरागसहजापूर्वपरमाहादरूपसुखरसानुभवपरमसमरसीभावपरिणामेन सालंबनः पूर्णकलशवद्भरितावस्थः केवलज्ञानाद्यनंतचतुष्टयव्यक्तिरूपस्य साक्षादुपादेयभूतस्य कार्यसमयसारस्योत्पादको योऽसौ निश्चयकारणसमयसारः स खलु तैर्न ज्ञात इति ॥ ॥ ४१३ ॥ अथ निर्विकारशुद्धात्मसंवित्तिलक्षणभावलिंगसहितं निर्ग्रथयतिलिंगं कौपीनकरणादिबहुभेदसहितं गृहिलिंगं चेति द्वयमपि मोक्षमार्गो व्यवहारनयो मन्यते । निश्चयनयस्तु सर्वद्रव्यलिंगानि न मन्यत इत्याख्याति-ववहारिओ पुण णओ दोण्णिवि लिंगाणि भणदि मोक्खपहे व्यावहारिकनयो द्वे लिंगे मोक्षपथे मन्यते । केन कृत्वा ? निर्विकारस्वजो तुष ( भूसा) के ही ज्ञानमें विमुग्ध बुद्धिवाले हैं वे तुषको चावल जानते हैं चावलको चावल ( तंदुल ) नहीं जानते ॥ भावार्थ-जो परमार्थ आत्माका स्वरूप नहीं जानते और व्यवहारमें ही मूढ हो रहे हैं अर्थात् शरीरादि परद्रव्यको ही आत्मा जानते हैं वे परमार्थ आत्माको नहीं जानते । जैसे तुष तंडुलका भेद तो जाना नहीं परंतु पराल (छिलके) को कूटें उनको तंदुलकी प्राप्ति नहीं होती, तुषतंडुलका भेदज्ञान होनेपर ही तंडुल पा सकता है ॥ आगे इसी अर्थक दृढ करनेको २४३ वां काव्य कहते हैं-द्रव्यलिंग इत्यादि । अर्थ-जो द्रव्यलिंगके मोहसे अंधे हैं उनसे समयसार नहीं देखा जा सकता क्योंकि इस लोकमें द्रव्यलिंग तो अन्य द्रव्यसे होता है और यह ज्ञान अपने आत्मद्रव्यसे ही होता है । भावार्थ-जो द्रव्यलिंगको ही अपना मानते हैं वे अंधे हैं उनको आप परसे कुछ नहीं ॥ ४१३ ॥ ___ आगे कहते हैं कि व्यवहारनय तो मुनिश्रावकके भेदसे दो प्रकारके लिंगोंको मोक्षमार्ग कहता है और निश्चयनय किसी लिंगको मोक्षमार्ग नहीं कहता;-[व्यावहारिक: नयः पुनः ] व्यवहारनय तो [ हे लिंगे अपि ] मुनि श्रावकके भेदसे दोनोंही प्रकारके लिंगोंको [मोक्षपथे भणति ] मोक्षके मार्ग कहता है और ६८ समय.

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