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अधिकारः ९] समयसारः।
५४३ कुलत्वलक्षणं सौख्यं स्वयमेव भविष्यतीति । "इतीदमात्मनस्तत्त्वं ज्ञानमात्रं व्यवस्थितं । अखंडमेकमचलं स्वसंवेद्यमबाधितं ॥ २४६ ॥” ४१५ ॥ इति श्रीअमृतचंद्रसूरिविरचितायां समयसारव्याख्यायामात्मख्यातौ
सर्वविशुद्धज्ञानप्ररूपको नवमोऽकः ॥ ९ ॥
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गाथात्रयं । ततः परं शास्त्रंद्रियविषयादिकं ज्ञानं न भवतीति प्रतिपादनरूपेण गाथापंचदश । ततः परं शुद्धात्मा कर्मनोकर्माहारादिकं निश्चयेन न गृह्णाति इति व्याख्यानमुख्यत्वेन गाथात्रयं । तदनंतरं शुद्धात्मभावनारूपं भावलिंगनिरपेक्षं द्रव्यलिंगं मुक्तिकारणं न भवतीति प्रति. पादनमुख्यत्वेन गाथासप्तकं । तदनंतरं मुख्यरूपफलदर्शनमुख्यत्वेन सूत्रमेकं ॥ ४१५ ॥ . इति श्रीजयसेनाचार्यकृतायां समयसारव्याख्यायां शुद्धात्मानुभूतिलक्षणायां
तात्पर्यवृत्ती समुदायेन षडधिकनवतिगाथाभित्रयोदशाधिकारैः समयसारचूलिकाभिधानो सर्वविशुद्धज्ञाननामा
दशमोऽधिकारः समाप्तः ॥ ९ ॥
ज्ञान साकार है प्रगट अनुभवगोचर है इसलिये इसीके द्वारा आत्मा पहचाना जाता है। इसकारण इस ज्ञानको ही प्रधानकर आत्मतत्त्व कहा गया है । ऐसा नहीं समझना कि आत्माको ज्ञानमात्र तत्व कहा है सो इतना ही परमार्थ है अन्य धर्म झूठे हैं आत्मामें नहीं हैं। ऐसा सर्वथा एकांत करनेसे मिथ्यादृष्टि होता है विज्ञानाद्वैतवादी बौद्धका तथा वेदांतका मत आता है । सो ऐसा एकांत बाधासहित है । ऐसे एकांत अभिप्रायकर मुनिवत भी पालन करे तथा आत्माके ज्ञानमात्रका ध्यान करे तौभी मिथ्यात्व नहीं छूटता । मंद कषायके निमित्तसे स्वर्ग पावे तो पाओ परंतु मोक्षका साधन तो नहीं होता । इसलिये स्याद्वादकर यथार्थ समझना ॥ ४१५ ॥ इस प्रकार यहांतक ४१५ गाथाओंका व्याख्यान और उस व्याख्यानके कलशरूप तथा सूचनिका रूप २४६ काव्य टीकाकारने किये।। इसप्रकार श्री पंडित जयचंद्रजी कृत समयसारग्रंथकी आत्मख्याति नाम टीकाकी भाषावधानिकामें नौवां सर्वविशुद्धज्ञानका अधिकार
पूर्ण हुआ ॥९॥