Book Title: samaysar
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Jain Granth Uddhar Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 554
________________ ५४१ अधिकारः ९] . समयसारः। प्रतिपादनात् स्वयं शब्दब्रह्मायमाणं शास्त्रमिदमधीत्य विश्वप्रकाशनसमर्थपरमार्थभूतचिप्रकाशरूपपरमात्मानं निश्चिन्वन् अर्थतस्तत्त्वतश्च परिच्छिद्य अस्यैवार्थभूतं भगवति एकअत्थे ठाहिदि पश्चादुपादेयरूपे शुद्धात्मलक्षणेऽर्थे निर्विकल्पसमाधौ स्थास्यति चेदा सो' पावदि उत्तमं सोक्खं स चेतयितात्मा भाविकाले प्राप्नोति लभते । किं लभते ? वीतरागसहजापूर्वपरमाहादरूपं आत्मोपादानसिद्ध स्वयमतिशयवद्वीतबाधं विशालवृद्धिहासव्यपेतं विषयविरहितं निःप्रतिद्वंद्वभावं अन्यद्रव्यानपेक्षं निरुपम, अमितं, शाश्वतं सर्वकालमुत्कृष्टानंतसारं परमसुखं सिद्धस्य जातमिति । अत्राह शिष्यः-हे भगवन् ! अतींद्रियसुखं निरंतरं व्याख्यातं भवद्भिस्तच जनैर्न ज्ञायते ? भगवानाह-कोऽपि देवदत्तः स्त्रीसेवनाप्रभृतिपंचेंद्रियविषयव्यापाररहितप्रस्तावे निर्व्याकुलचित्तः तिष्ठति, स केनापि पृष्टः भो देवदत्त ! सुखेन तिष्ठसि त्वमिति ? तेनोक्तं सुखमस्तीति तत्सुखमतींद्रियं । कस्मात् ? इति चेत् संसारिकसुखं पंचेंद्रियप्रभवं । यत्पुनरतींद्रियसुख तत्पंचेंद्रियविषयव्यापाराभावेऽपि दृष्टं यत इदं तावत्सामान्येनातींद्रियसुखमुपलभ्यते । यत्पुनः पंचेद्रियमनोभवसमस्तविकल्पजालरहितानां समाधिस्थपरमयोगिनां स्वसंवेदनगम्यमतीन्द्रियसुखं तद्विशेषेणेति । यच्च मुक्तात्मनामतींद्रियसुखं तदनुमानगम्यमगम्यं च । तथाहि-मुक्तानामिंद्रियविषयव्यापाराभावेऽपि अतींद्रियसुखमस्तीति पक्षः । कस्मात् ? इति चेत् इदानीं तेन विषयव्यापारातीतनिर्विकल्पसमाधिरतपरममुनींद्राणां स्वसंवेद्यात्मसुखोपलब्धिरिति हेतुः । एवं पक्षहेतुरूपेण द्वयंगमनुमानं ज्ञातव्यं । आगमे तु प्रसिद्धमेवात्मोपादानसिद्धमित्यादि ष्यति] उत्तम सुख स्वरूप होगा ॥ टीका-जो भव्य पुरुष आत्मा निश्चयकर इस शास्त्रको पढके, सब पदार्थोंके प्रकाशनेमें समर्थ ऐसे परमार्थभूत चैतन्य प्रकाशरूप आत्माका निश्चय करता हुआ अर्थसे तथा यथार्थ तत्त्वसे जान, इसीके अर्थभूत जो भगवान एक पूर्णविज्ञानघनस्वरूप परब्रह्म उसमें सब तरहसे उद्यम आरंभ करके ठहरेगा वह पुरुष उत्तम अनाकुलता लक्षणवाले सुखरूप आप ही हो जायगा । कैसा है यह शान? समयसारभूत भगवान् परमात्मा सबके प्रकाशनेवाला होनेसे जिसको विश्वसमय कहते हैं उसके प्रकाशनेसे आप स्वयं शब्दब्रह्मसरीखा है। और वह सुख कैसा है कि जिसको प्राप्त होगा ? तत्काल उदयरूप प्रगट होता एक चैतन्यरसकर भरे अपने स्वभावमें अच्छीतरह ठहरा निराकुल आत्मस्वरूपपनेसे परमानंद शब्दकर कहने योग्य है ॥ भावार्थ-इस शास्त्रका नाम समयप्राभृत है । समय नाम पदार्थका है उसके कहनेवाला है अथवा समय नाम आत्माका है उसका कहनेवाला है । वह आत्मा सब पदार्थोके प्रकाशनेवाला है उसको यह कहता है । जो सब पदार्थोंका कहनेवाला हो उसको शब्दब्रह्म कहते हैं। ऐसे आत्माको कहनसे इस शास्त्रको भी शब्दब्रह्म सरीखा कहना चाहिये । शब्दब्रह्म तो द्वादशांग शास्त्र है उसकी उपमा इसको भी है। यह

Loading...

Page Navigation
1 ... 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590