Book Title: samaysar
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Jain Granth Uddhar Karyalay

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Page 512
________________ अधिकारः ९ ] समयसारः । ४९९ कायेन चेति १ न करोमि न कारयामि न कुर्वंतमप्यन्यं समनुजानामि मनसा च वाचा चेति २ न करोमि न कारयामि न कुर्वतमप्यन्यं समनुजानामिपि वाचा च कायेन चेति ३ न करोमि न कारयामि न कुर्वतमप्यन्यं समनुजानामि मनसा कायेन चेति ४ न करोमि न कारयामि न कुर्वतमप्यन्यं समनुजानामि मनसा चेति ५ न करोमि चनाकल्पः कथ्यते तद्यथा - यदहं करोमि यदहं कारयामि यदहं कुर्वंतमप्यन्यं प्राणिनं समनुजानामि । केन ? मनसा वाचा कायेनेति तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति पूर्ववत् षट्संयोगे नैकभंगः । तथा यदहं कमाके घर में रक्खा था पीछे उससे ममत्व छोड़ा तब उसका भोगनेका अभिप्राय नहीं रहा ॥ कमाया था जैसा न कमाया । उसीतरह कर्म बांधा था उसको अहित जान म मत्व छोड़ा उसके फलमें लीन न होगा तब बांधा तैसा न बांधा मिध्या ही है ऐसा जानना । इसतरह प्रतिक्रमण कल्प है । अब आलोचना कल्प कहते हैं । वहां संस्कृत टीकाका पाठ ऐसा है— न करोमि इत्यादि । अर्थ - इसमें वर्तमान कर्तापनका निषेध है । जो मैं कर्मको न करता हूं न अन्यको प्रेर कराता हूं और न अन्य करते हुएको भी भला जानता हूं मनकर वचनकर कायकर । ऐसा प्रथम भंग है । इसमें कृत कारित अनुमोदना इन तीनोंपर मन वचनकाय लगाये इसलिये तीन तीनके अंककी समस्या से तेतीसका भंग कहना । १ । ३३ । इसीतरह अन्य भंगों के भी संस्कृत पाठ हैं उनकी वचनिका लिखते हैं—वर्तमान कर्मको मैं न करता हूं न अन्यको प्रेरकर कराता हूं न अन्य करते हुएको भला जानता हूं मनकर वचनकर । ऐसा दूसरा भंग है । इसमें कृतकारित अनुमोदना इन तीनोंपर मन वचन ये दो लगाये इसलिये बत्तीसकी समस्याका भंग कहना । २ । ३२ । वर्तमान कर्मको मैं न करता हूं न अन्यकूं प्रेरकर कराता हूं और अन्य करते हुएको भला भी नहीं जानता मनकर कायकर । ऐसा तीसरा भंग है । इसमें कृतकारित अनुमोदनापर मन काय लगाये तब बत्तीसकी समस्याका भंग हुआ | ३ | ३२ । वर्तमान कर्मको मैं नहीं करता अन्यको प्रेरकर कराता भी नहीं । और अन्य करते हुएको भला भी नहीं जानता वचनकर कायकर । ऐसा चौथा भंग है । इसमें कृत कारित अनुमोदना- इन तीनोंपर वचन काय ये दो लगाये तब बत्तीसकी समस्याका भंग हुआ । ४ । ३२ । ऐसे बत्तीसकी समस्या के तीन भंग हुए। वर्तमान कर्मको मैं नहीं करता अन्यको प्रेरकर कराता नहीं अन्य करते हुएको भला भी नहीं जानता मनकर। ऐसा पांचवां भंग है । इसमें कृतकारित अनुमोदना इन तीनोंपर एक मन लगा इसलिये इकतीसकी समस्याका भंग हुआ । ५ । ३१ । वर्तमान कर्मको मैं करता नहीं अन्यको प्रेरकर कराता नहीं और अन्य करते हुएको भला भी नहीं जानता वचनकर । ऐसा छठा भंग है। इसमें कृतकारित अनुमोदना इन तीनों I 1

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