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३८२ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् ।
-[बंधरागादीनामुदयमदयं दारयत्कारणानां कार्य बंधं विविधमधुना सद्य एव प्रणुध । ज्ञानज्योतिः क्षपिततिमिरं साधु सन्नद्धमेतत्तद्वद्यद्वत्प्रसरमपरः कोऽपि नास्या वृणोति ॥ ॥ १७९॥" २८६ ॥ २८७॥ इति बंधो निष्क्रांतः । इति श्रीमदमृतचंद्रसूरिविरचितायां समयसारव्याख्यायामात्मख्यातौ बंध
प्ररूपकः सप्तमोऽकः ॥ ७॥ सुद्धो पच्छा पुरदो य संपदियकाले । परसुहदुक्खणिमित्तं वज्झदि जदि णत्थि णिव्याणं ॥ एवं ज्ञानिनामाहारग्रहणकृतो बंधो नास्तीति व्याख्यानमुख्यत्वेन सूत्रचतुष्टयेन षष्ठस्थलं गतं॥२८७॥ इति श्रीजयसेनाचार्यकृतायां समयसारव्याख्यायां शुद्धात्मानुभूतिलक्षणायां तात्पयवृत्ती पूर्वोक्तक्रमेण जह णाम कोवि पुरिसो इत्यादि मिथ्यादृष्टिसदृष्टिव्याख्यानरूपेण गाथादशकं । निश्चयहिंसाकथनरूपेण गाथासप्तकं, निश्चयेन रागादिविकल्प एव हिंसेति कथनरूपेण सूत्रषटकं, अव्रतव्रतानि पापपुण्यबंधकार'णानीत्यादिकथनेन गाथापंचदश, निश्चयनयेन स्थित्वा व्यवहारस्त्याज्य इति मुख्यत्वेन गाथाषटुं, पिंडशुद्धिमुख्यत्वेन सूत्रचतुष्टयं । निश्चयनयेन रागादयः कर्मोदयजनिता इति कथनमुख्यत्वेन सूत्रपंचकं. निश्चयनयेनाप्रतिक्रमणमप्रत्याख्यानं च बंधकारणमिति प्रतिपादनरूपेण गाथात्रयमित्येवं समुदायेन षट्पंचाशद्गाथाभिरष्टभिरंत
राधिकारैः अष्टमो बंधाधिकारः समाप्तः ॥ ७ ॥ दूसरा कोई नहीं आवरण करसके ऐसी यह ज्ञानज्योति है । क्या करके सजी ? उसीको कहते हैं—पहले तो बंधके कारणरूप रागादिकभावोंके उदयको निर्दयकी तरह (जैसे निर्दयी पुरुष किसीको मार डाले उसतरह ) विदारती प्रगट हुई, पीछे जब कारण दूर हुए तब उनका कार्य जो कर्मका ज्ञानावरणादिरूप अनेक प्रकार बंध उसको अब तत्काल ही दूर करके सजी है ॥ भावार्थ-जब ज्ञान प्रगट होता है तब रागादिक नहीं रहते, उनका कार्य बंध भी नहीं रहता तब फिर इसको आवरण करनेवाला कोई नहीं रहता, सदाकाल प्रकाशरूप ही रहती है ॥ २८६।२८७॥ __ इसतरह रंगभूमिमें बंधके स्वांगने प्रवेश किया था सो जब ज्ञान ज्योति प्रगट हुई तब बंध स्वांगको दूर कर निकल गया ॥ यहांतक गाथा २८७ और कलश १७९ हुए । सवैयातेईसा-"जो नर कोय परै रजमांहि सच्चिक्कण अंग लगै वह गाढे,
त्यों मतिहीन जु रागविरोध लिये विचरे तब बंधन वाढै । पाय समै उपदेश यथारथ रागविरोध तजै निज चाटै ।
नांहि बंधै तब कर्मसमूह जु आप गहै पर भावनि काटै ॥१॥" इसप्रकार श्री पं० जयचंद्रकृत समयसार नामा ग्रंथकी आत्मख्यातिनामक
टीकाकी भाषावचनिकामें बंध नामा सातवां अधिकार पूर्ण हुआ ॥ ७ ॥