Book Title: samaysar
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Jain Granth Uddhar Karyalay

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Page 471
________________ ४५८ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् [ सर्वविशुद्धज्ञानजह परदव्वं सेडिदि हु सेडिया अप्पणो सहावेण । तह परदव्वं जाणइ णाया वि सयेण भावेण ॥ ३६१॥ . जह परदव्वं सेडिदि हु सेडिया अप्पणो सहावेण । तह परव्वं पस्सइ जीवोवि सयेण भावेण ॥ ३६२॥ जह परदव्वं सेडदि हु सेडिया अप्पणो सहावेण । तह परदव्वं विजहइ णायावि सयेण भावेण ॥ ३६३ ॥ बहिर्भागे तिष्ठतीत्यर्थः । तर्हि किं भवति ? श्वेतिका श्वेतिकैव स्वस्वरूपे तिष्ठतीत्यर्थः । तथा श्वेतमृत्तिकादृष्टांतेन ज्ञानात्मा घटपटादिज्ञेयपदार्थस्य निश्चयेन ज्ञायको न भवति तन्मयो न भवतीत्यर्थः तर्हि किं भवति ? ज्ञायको ज्ञायक एव स्वस्वरूपे तिष्ठतीत्यर्थः । एवं ब्रह्माद्वैतवादिवत्ज्ञानं ज्ञेयरूपेण न परिणमति-इति कथनमुख्यत्वेन गाथा गता। तथा तेनैव च श्वेतमृतिकादृष्टांतेन दर्शक आत्मा दृश्यस्य घटादिपदार्थस्य निश्चयेन दर्शको न भवति, तन्मयो न भवतीत्यर्थः । नयके वचन है [तस्य ] उसे [ समासेन शृणु] संक्षेपसे कहते हैं उसको सुनो। [ यथा ] जैसे [ सेटिका ] खड़िया [आत्मनः स्वभावेन ] अपने स्वभावकर [ परद्रव्यं सेटयति ] भीत आदि परद्रव्योंको सफेद करती है [ तथा] उसीतरह [ज्ञाता अपि ] जाननेवाला भी [ परद्रव्यं ] परद्रव्यको [खकेन भावेन ] अपने स्वभावकर [जानाति ] जानता है [ यथा सेटिका०] जैसे खडिया०.... [ तथा ] उसीतरह [ ज्ञातापि ] ज्ञाता भी [खकेन भावेन ] अपने स्वभावकर [परद्रव्यं पश्यति ] परद्रव्यको देखता है [ यथा सेटिका०] जैसे खड़िया०.... [तथा ] उसीतरह [ ज्ञातापि ] ज्ञाता भी [ खकेन भावेन ] अपने स्वभावकर [परद्रव्यं विजहति ] परद्रव्यको त्यागता है [ यथा सेटिका०] जैसे खडिया०....[ तथा ] उसीतरह [ ज्ञातापि ] ज्ञाता भी [खकेन भावेन ] अपने स्वभावकर [ परद्रव्यं श्रद्दधाति ] परद्रव्यका श्रद्धान करता है । [एवं तु] इसतरह जो [ ज्ञानदर्शनचारित्रे ] दर्शनज्ञानचारित्रमें [ व्यवहारस्य विनिश्चयः] व्यवहारका विशेषकर निश्चय [ भणितः ] कहा है [ एवमेव ] इसीतरह [अन्येषु पर्यायेष्वपि ] अन्यपर्यायोंमें भी [ ज्ञातव्यः ] जानना चाहिये ॥ टीका-प्र. थम ही दृष्टांत कहते हैं-इस लोकमें खड़िया श्वेतगुणकर भरा हुआ द्रव्य है उसको लोक कलई पांडु इत्यादि भी कहते हैं । उसके व्यवहारकर तो श्वेत करने योग्य मंदिर कुटी भीत आदि परद्रव्य हैं । अब यहां खडिया और परद्रव्य दोनोंके परमार्थसे ( असलमें ) क्या संबंध है ? यह विचारते हैं कि श्वेत करने योग्य कुटी आदि परद्रव्य हैं उनको श्वेत करनेवाली खड़िया है या नहीं ? यदि ऐसा मानिये कि सेटिका भींत आ

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