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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । सर्वविशुद्धज्ञानएव न भवेत् । न भवति कर्तृशून्यमिह कर्म चैकतया स्थितिरिह वस्तुनो भवतु कर्तृत्वादेव ततः ॥ २११॥ बहिर्जुठति यद्यपि स्फुटदनंतशक्तिः स्वयं तथाप्यपरवस्तुनो विशति नान्यवस्त्वंतरं । स्वभावनियतं यतः सकलमेव वस्त्विष्यते स्वभावचलनाकुलः किमिह मोहितः क्लिश्यते ॥ २१२ ॥ वस्तु चैकमिह नान्यवस्तुनो येन तेन खलु वस्तुं वस्तु तत् । निश्चयोयमपरोऽपरस्य कः किं करोति हि बहिर्जुठन्नपि ॥ २१३ ॥ "यत्तु वस्तु कुरुतेऽन्यवस्तुनः किंचनापि परिणामिनः स्वयं । च्यावहारिकदृशैव तन्मतं नान्यदस्ति किमपीह निश्चयात् ॥ २१४ ॥” ॥ ३४९-३५५ ॥ भवति इति । तया हर्षविषादचेष्टया सह अशुद्धनिश्चयेनाशुद्धोपादानरूपेणानन्यश्च भवति इति । एवं पूर्वोक्तप्रकारेणाज्ञानिजीवो निर्विकल्पस्वसंवेदनज्ञानात् च्युतो भूत्वा सुवर्णकारादिदृष्टांतेन व्यवहारनयेन द्रव्यकर्म करोति भुंक्ते च । तथैवाशुद्धनिश्चयेन भावकर्म चेति व्याख्यानमुख्यत्वेन षष्ठस्थले गाथासप्तकं गतं ॥ ३४९-३५५ ॥ अथ ज्ञानं ज्ञेयं वस्तु जानाति तथापि धवलपने स्वभावसे चलायमान होके आकुल तथा मोही हुआ क्यों क्लेशरूप होता है ? ॥ भावार्थ-वस्तुस्वभाव तो नियमसे ऐसा है कि किसी वस्तुमें कोई वस्तु नहीं मिलती
और यह प्राणी अपने स्वभावसे चलायमान होके व्याकुल (क्लेशरूप ) हो जाता है यह बड़ा अज्ञान है । फिर इसी अर्थको दृढ करने के लिये २१३ वां श्लोक कहते हैं-वस्तु इत्यादि । अर्थ-जिसकारण इस लोकमें एक वस्तु दूसरी वस्तुकी नहीं है इसीकारण वस्तु है वह वस्तुरूप है । ऐसा न माना जाय तो वस्तुका वस्तुपना ही नहीं ठहर सकता ऐसा निश्चय है । ऐसा होनेपर अन्यवस्तु है वह अन्यवस्तुके बा. हर लोटती है तो भी उसका क्या कर सकती है कुछ भी नहीं कर सकती ॥ भावार्थ-वस्तुका स्वभाव तो ऐसा है कि अन्य कोई वस्तु उसे बदल नहीं सकती तब अन्यका अन्यने क्या किया ? कुछ भी नहीं किया । जैसे चेतन वस्तुके एक क्षेत्रावगाहरूप पुद्गल रहते हैं तो भी चेतनको जड़कर अपनेरूप तो नहीं परिणमासकते तब चेतनका क्या किया ? कुछ भी नहीं किया यह निश्चयनयका मत है, और निमित्त नैमित्तिक भावसे अन्यवस्तुके परिणाम होता है वह भी उस वस्तुका ही है अन्यका कहना व्यवहार है । यही २१४ श्लोकसे कहते हैं-यत्तु इत्यादि । अर्थ-जो कोई वस्तु अन्य वस्तुका कुछ करता है ऐसा कहा जाय तो वस्तु आप परिणामी है अवस्थासे अन्य अवस्थारूप होना वस्तुका पर्याय स्वभाव है इसीसे परिणामी कहते हैं ऐसे परिणामी वस्तु के अन्यके निमित्तसे परिणाम हुआ उसको ऐसा कहना कि यह अन्यने किया यह कहना व्यवहारनयकी दृष्टिसे है । और निश्चयसे तो अन्यने कुछ किया नहीं जो परिणाम हुआ वह अपना ही हुआ दूसरेने तो उसमें कुछ भी लाकर नहीं रक्खा , ऐसा जानना ॥ ३४९ से ३५५ तक ॥